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जब कभी छत पे नज़र जाती है ।
उनकी सूरत भी निखर जाती है ।।
पा के महबूब के आने की खबर।
वो करीने से सँवर जाती है ।।
कोई उल्फत की हवा है शायद ।
ज़ुल्फ़ लहरा के बिखर जाती है ।।
इक मुहब्बत का इरादा लेकर ।
रोज साहिल पे लहर जाती है ।।
बेसबब इश्क हुआ क्या उस से ।
वो तसव्वुर में ठहर जाती है ।।
अब न चर्चा हो तेरी महफ़िल में ।
चोट फिर से वो उभर जाती है ।।
हिज्र की बात करूँ क्या उससे ।
बात सुनकर वो सिहर जाती है ।।
याद क़ातिल की तरह चुपके से ।
दिल मे हौले से उतर जाती है ।।
रोज मजबूरियों की दहशत में ।
जिंदगी पर भी क़तर जाती है ।
गर खुदा की है इनायत तुझ पे ।
मौत छूकर भी गुज़र जाती है ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अ प्रकाशित
Comment
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को " |
आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
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