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फिर भी इम्तहान दिया मैंने ...!!!

कितना दिल लगाने से पहले, इत्मिनान किया मैंने ,
सच्ची है मुहब्बत 'का' फिर भी इम्तहान दिया मैंने ॥

कहने को तो मुहब्बत करना, गुनाह है इस जहाँ में ,
फिर भी करके मुहब्बत ,किया सबको हैरान मैंने ॥

हमारे इश्क की चर्चा है, शहर के ह़र मोड़ पर ,
इस तरह सारे शहर को, किया परेशान मैंने ॥

न छूटे दिल की लगी ,तेरी दिल-लगी में कहीं ,
कितना तेरे लिये दिल ,लगाना किया आशां मैंने ॥

तुझसे माँगा न कभी, तेरी चाहत के सिवा ,
तेरी चाहत की राहों में , सब किया कुर्बान मैंने ॥

न कभी तेरे जज्बात फिसले ना, फिसला दिल तेरा ,
इसी जज्बे का ''कमलेश '' अहसान खुद लिया मैंने ॥

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 7, 2010 at 12:11pm
वाह वाह ! गज़ब की आशनाई है आपकी ग़ज़ल मे , बहुत बढ़िया ,

कृपया ध्यान दे...

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