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व्यंग्य - बाबागिरी का कमाल

बाबागिरी का कमाल अभी चहुंओर छाया हुआ है। अब लोगों को समझ में आ गया है, गांधीगिरी में भलाई नहीं है, बल्कि बाबागिरी से ही तिजोरी भरी जा सकती है। गांधीगिरी से केवल आत्मा को संतुष्ट किया जा सकता है, मगर बाबागिरी में करोड़ों कमाए बगैर, मन की धनभूख शांत नहीं होती। जब से इस बात का खुलासा हुआ है कि देश का एक बड़ा बाबा महज कुछ बरसों में करोड़पति बन गया तथा अभी अरबों की संपत्ति का और राज खुलना बाकी है, उसके बाद तो हम जैसे लोग बाबागिरी की तिमारदारी में लगे हुए हैं। बरसों कलम खिसते रहो, लेकिन इतना तय है कि इन बाबाओं की तरह किसी भी तरह से करोड़पति-अरबपति नहीं बना सकता।

ऐसे में अब बाबागिरी की राह पकड़ने की धुंध मन में रोज छा रही है। हर दिन मेरा मन कचोटता है कि जब पैसा कमाने का द्वार खुला हुआ है, तो क्यों खुद को रोके बैठे हो ? जाओ, कहीं भी बाबा बनकर अपना ज्ञान बांटो। मुझे यहां इतना अहसास है कि भले ही आप कम पढ़े लिखे हांे, अनपढ़ हांे, मगर आपको थोड़ी बहुत शास्त्र तथा कुछ ज्ञान की बातें जरूर पता होनी चाहिए। इसके अलावा आप में लोगों के मनोभाव का आकलन लगाने का गुण होना चाहिए, इसके बगैर बाबागिरी में सफलता की गारंटी नहीं है। बाबाओं की एक खासियत होती हैं, वे अपनी उम्र व शैक्षणिक योग्यता तथा दान के रूप में मिलने वाले धन का खुलासा नहीं करते। स्वाभाविक भी है, हम जैसे थोड़ी न है, एकदम फक्कड़ लिख्खास। जाहिर सी बात है, जब बाबागिरी कर रहे हैं, तो कुछ दमखम रखेंगे। बाबागिरी में कमाल दिखाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है, उंची हैसियत के लोगों का पहले विश्वास जीतो, उसके बाद तो मध्यम व निचले तबके के लोग देखते ही देखते शरणागत हो जाते हैं।

अभी बाबागिरी में करामात की चर्चा हर जुबान की शान बनी हुई है। एक अरसे से जब किसी से पूछा जाता था कि पढ़-लिखकर क्या बनोगे तो सहसा जवाब मिलता था, डॉक्टर, इंजीनियर। इधर मीडिया में बाबागिरी से कुछ ही बरसों में करोड़पति-अरबपति बनने की बात छाई है, उसके बाद बच्चा-बच्चा यही कहने लगा है कि अब तो बाबागिरी ही करनी है ? इसके लिए किसी योग्यता की जरूरत भी नहीं पड़ती ? पढ़ाई के बारे में कोई पूछने वाला नहीं होता ? इतने कम समय में पैसा कमाने का भला और शॉर्टकट रास्ता हो सकता है ? बाबागिरी में चौतरफा लाभ ही लाभ है, एक तो लोग शरणागत होते हैं, पूजा करते हैं, विशेष पद से अलंकृत करते हैं और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। इसके बाद और क्या बच जाता है ? बस, उपदेश का गुण ऐसा आना चाहिए, जिससे किसी भी तरह लोग दिग्भ्रमित हुए बगैर न रहें।
अब तो मैंने पूरा मन ही बन लिया है कि बाबागिरी का कमाल हर हाल में दिखाना ही है। भले ही इसके लिए मुझे अपना चोला ही बदलना पड़े, क्योंकि आज के युग में इतना तो समझ में आया ही गया है कि जब तक आप लखपति, करोड़पति, अरबपति नहीं है, तब तक आप कुछ नहीं है।


राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 098934-94714

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