For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - किस्से कहानी हो गए

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए

ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए

 

प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,

जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए

 

वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,

आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए

 

सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,

आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए

 

चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,  

वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:45am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:44am

आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:44am

आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2017 at 9:57pm

आदरनीय बसंत भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravindra Pandey on May 23, 2017 at 6:27pm

waah......ham bhi fani ho gaye....

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 3:55pm

आदरणीय Gajendra shrotriya जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका, हौसला अफजाई के लिए 

Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 3:18pm
वाह!बहुत खूब।
वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,
आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए
सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,
आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए
चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,
वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए
उम्दा कहन के लिए बहुत बधाई।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 1:23pm

आदरणीय Anuraag Vashishth  जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:18am
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:17am

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service