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ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही-पंकज मिश्र

ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही

मासूम बच्चों की किलकारियों में
खोया हुनर अपना हम आज ढूंढें

चलते ठुमक कर के नन्हें पगों सं'ग
हम भी तो चलने का कुछ सीख लें ढं'ग

जीने का अंदाज़ पाने दे यूँ ही
ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही।।

गिल्लू फुदकती, चहकते परिंदे
हम सीख लें मस्त, रहना तो इनसे

कल कल का संगीत बहती नदी से
कोयल की कू कू, से स्वर सीखने दे

हो के मगन मुस्कुराने दे यूँ ही
ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही।।

टकरा के तूफ़ान खुद सर झुका ले
हिम राज गंभीरता कुछ सिखा दे

धारण कला सीखने दे धरा से
गहराई मन में समंदर सी आये

जीवन का रस हमको पाने दे यूँ ही
ए ज़िन्दगी मुस्कुराने दे यूँ ही।।

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:51pm
आदरणीय चयनित भाई बहुत बहुत आभार
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2017 at 9:20pm
आदरणीय पंकज जी, खूबसूरत रचना के लिए हृदय तल से बधाई प्रेषित करता हूँ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 8, 2017 at 12:50am
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, आपका स्नेह भी सदा मिलता रहे।।
Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 8:46pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
मरी दुआ है आपकी ज़िन्दगी हमेशा गुनगुनाती रहे ।

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