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आओ सजनी // रवि प्रकाश

आओ इक दूजे से कह लें
दिन का हाल रात की बातें
सौगातें हर बीते पल की
याद करें फिर से सजनी
रजनी ये फिर क्यों लौटेगी
जो बीत गई तो बीत गई
कल रीत नई चल निकलेगी
जब आएगा सूरज नूतन
उपवन-उपवन क्या बात चले
गलियों में कैसी हलचल हो
कलकल हो कैसी सरिता में
अम्बर का विस्तार न जाने
अनजाने रंगों में ढल कर
सारे जग पर छा जायेगा
गा पाएगा फिर भी क्या मन
वही प्रीत का गीत पुराना
वही सुहाना मौसम फिर से
लौटेगा क्या मन के गुलशन
धड़कन-धड़कन नाम तुम्हारा
इसी तरह क्या ले पाएगी
दे पाएगी सपने हमको
नींद हमारी वही सुहाने
वही तराने जिनको गा कर
तन-मन पावन हो जाता था
खो जाता था हर दुख जिनमें
लौटेंगे, ये विश्वास नहीं
अहसास नहीं ये फिर होंगे
जाने जीवन कैसे बीते
रीते-रीते साँझ-सवेरे
चौखट पे यूँ पसरे होंगे
मानो युग से वहीं पड़े हों
और अड़े होंगे कितने ही
नाउम्मीदी के साये भी
आएगी फिर धूप कहाँ से
जो तन मन को गरमाहट दे
आहट दे थोड़ी ख़ुशियों की
थोड़ी सी यादें दुहरा दे
गा दे कुछ भी मनभावन सा,
इसीलिए ये पल अनुपम है
हम हैं इसमें थोड़ी पुलकन
थोड़ी लज्जा थोड़ी तड़पन
थोड़ी सिहरन लेकर बैठे
आओ इसमें जीवन भर लें
उत्सव कर लें इसको सजनी।
- 24.01.2017
-मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Ravi Prakash on January 28, 2017 at 8:28am
धन्यवाद आदरणीया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 27, 2017 at 9:17pm

अच्छी प्रस्तुति है आद० रवि प्रकाश जी हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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