For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात के सन्नाटे में

कहते हैं

आज भी रोती है वह नदी

 

जिन्होंने भारत में

पूर्व से पश्चिम की ओर

ऊंचाइयों पर

पथरीले कगारों के बीच से

बहती उस एक मात्र पावन चिर-कुमारिका

नदी का आर्तनाद कभी सुना है

 

जिन्होंने की है कभी उसकी

दारुण परिक्रमा

जो विश्व में

केवल इसी एक नदी की होती है ,

हुयी है और आगे होगी भी

 

वे विश्वास से कहते है -

‘इस नदी में नहीं सुनायी देती

रात में कल-कल ध्वनि

न कोई गीत न संगीत

अपितु गूंजती हैं सिसकियाँ

उच्छ्वास, चीत्कार, क्रंदन’

 

उस नदी से

जिसे मिला है प्रलय में भी 

नष्ट न होने का वरदान 

जिसकी शुचिता के कारण

जिसके चिर कौमार्य के मान में

कोई भी नहीं करता

उस सरिता में निर्वसन स्नान

 

कभी हुआ था उसे प्यार

एक नद से

जो उसके साथ ही खेला था 

पला था, बड़ा हुआ था

अमर कंटक की पहाड़ियों में

जल-स्रोतों, प्रपातों और झरनों के बीच

और उनके बीच पनपा था

नैसर्गिक अनुराग

 

कितनी इठलाती थी वह

जब साझा करती थी वह

अपना प्रेम -प्रसंग 

अपनी प्रिय सहेली जोहिला के साथ 

जो उसकी दासी भी थी, राजदार भी 

और वहीं पली थी अमरकंटक में

उसी के साथ

 

कितनी प्रसन्न थी वह

जब शोण-नद से तय हुआ था

उसका व्याह

जोहिला के साथ झूम कर नाची थी वह

उसकी उर्मिल, फेनिल, हीरक तरंगो ने

छुआ था आसमान

 

ज्यों-ज्यों निकट आता गया समय

उतनी ही उसकी बढ़ती गयी उत्कंठा 

पर शोण ने की देर  

नदी के सब्र का बाँध

मानो लगा टूटने  

 

उसने जोहिला से कहा- ‘वह जाये

शोण को ससम्मान शीघ्र लेकर आये’

जोहिला ने कहा- ‘मैं तेरे हित जाऊंगी

पर दासी बन कर नही

सखी बनूंगी तेरी

तेरे अंग-वस्त्र पहनूंगी

इतना ही नहीं बन्नी

तेरे भूषण भी धारूंगी ‘

 

‘एवमस्तु बहना पर उलटे पाँव लौटना ‘

 

उद्दाम यौवन से भरपूर

थी जोहिला

ऊपर से सखी के वस्त्र

आभूषण का साज  

पावसी नदी की भाँति निर्बंध, अनिस्तार

शोण से मिलने यूँ चली

मानो वह नद न हो, महानद न हो

कोई महासागर हो 

 

सामने से आ रहा था शोण का प्रवाह-रथ

अद्भुत प्रचंड आवेश था शोण का

जोहिला भी कम नहीं

अपनी प्रेयसी के वस्त्र

और आभरण से शोण धोखा गया

जोहिला को रेवा समझ उसी में समा गया    

आज भी गवाह है दशरथ-घाट इसका

दारुण मिलन का

 

शोण तब नहीं जानता था

उसकी भावी पत्नी नहीं थी

आगंतुका

बल्कि यह कि वह महज एक दासी थी

छल किया था जिसने

अपनी सखी से और उस शोण से भी 

 

पीछे से हठात

तभी रेवा वहाँ आ गयी

चिर सुकुमारिका, कन्यका कुमारिका

जोहिला को रोम-रोम शोण में समाया देख 

फेर ली आँख उसने घृणा और शर्म से

साथ ही फेर लिये वापस

अपने कदम 

नहीं जायेगी अब

प्राची की ओर वह   

और फिर चल पडी वह सहज एकाकी 

उस दिशा पथ पर पश्चिम की ओर

जिधर प्रायशः

भारत की नदियाँ नहीं जाती

 

पीछे से

पुकारता रहा स्तब्ध,

अपने आप से ठगा गया

वह हतभाग्य शोणभद्र  

किन्तु नहीं लौटी वह पुण्यसलिला

चिर सुकुमारिका

जो आज भी रोती है उस विश्वासघात से

जो किया उसकी सहेली ने

और उसके प्रिय ने

 

रात के सन्नाटे में

जंगल में, बियाबान में

अँधेरे में मैदान में

लोग सुनते है

नर्मदा का क्रंदन

आप भी चाहते हैं

यदि सत्य यह जानना

तो कभी किसी रात को तट पर जाइये

और शिवपुत्री को रोता हुआ पाइए

आप सुनेंगे वहां    

ऐसा अवसाद गीत जिसका कोई अंत नहीं

क्योंकि  प्रलयकाल में भी 

नष्ट नहीं होगी वह

ऐसा वरदान है   

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 926

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 13, 2016 at 5:02pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,एक नदी की करुणा सुनी उसकी कथा के बारे में जानकारी हासिल हुई,कविता तवील है मगर एक ही साँस में पढ़ गया,बहुत अच्छी कगी ये कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'नद'का अर्थ में नहीं समझ पाया कृपया बताने का कष्ट करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service