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दिल को दरिया बना लिया हम ने (ग़ज़ल)

2122 1212 22

आपको आस-पास रखते हैं
फिर भी खुद को उदास रखते हैं

दिल को दरिया बना लिया हम ने
और लब हैं कि प्यास रखते हैं

लोग मिलते हैं मुस्कुरा के गले
दिल में लेकिन भड़ास रखते हैं

आदमी हम भले हैं मामूली
दोस्त पर ख़ास-ख़ास रखते हैं

लोग तकते हैं "जय" तुम्हारी राह
अब भी जीने की आस रखते हैं

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 9:43am

आदरणीय जयनित भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Samar kabeer on November 9, 2016 at 5:17pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,अच्छी गज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में "ख़ास"क़ाफ़िया उर्दू के लिहाज से ग़लत है,देवनागरी में चल जाता है,जानकारी के लिए बता रहा हूँ ।

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