122 122 122 122
मुहब्बत सभी से जताते नहीं हैं|
मगर दोस्तों से छुपाते नहीं हैं|
हमें तो पता है सबब आशिकी का,
तभी दिल किसी से लगाते नहीं हैं ।
बहुत चोट खाई है अपनों से अब तक
तभी जख्म सबको दिखाते नहीं हैं|।
अमिट कुछ निशां पीठ पर दे गए वो,
नये दोस्त हम अब बनाते नहीं हैं|
कि दौरे मुसीबत में थामा जिन्होंने
तो हर्गिज उन्हें हम भुलाते नहीं हैं।
अगर हो न मुमकिन जो पाना तो ‘मिंटू’
वे सपने कभी हम सजाते नहीं हैं|
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेश कुमार साहेब ............बहुत-बहुत शुक्रिया
आदरणीय कबीर साहेब .................ममनून हूँ आपका | नमन आपको
आदरणीय प्रमोद साहेब ............... बहुत-बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय रवि शुक्ला साहेब...............हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया
आदरणीय बैज नाथ जी बढि़या गजल हुइ्र हैै शेर दर शेर दाद हाजिर है
सुन्दर गजल हुई है।बधाई ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online