For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक हिंदी ग़ज़ल इस्लाह के लिए

बह्र-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,
मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1
----
अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
----
जा रहेगें मंजिलों तक जख़्म वाले पांव भी,
यार बस अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
----
इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
----
नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
----
भूख जिनकी बंद रखती है तिजोरी आपकी
उन गरीबो के बुझे चूल्हे तो जलने दीजिये। 6
---------------------------
सुनील प्रसाद शाहाबादी
मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना।

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 3:50pm

अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2

 

अश्क भर भर जाम पीता ही रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाता हैं कदम लेकिन सँभलने दीजिये। 2
----
मंजिलों तक जा रहेंगे घाव से ये पग भरा,
हो बिछे जो राह भर भी खार चलने दीजिये। 3

 

जख़्म वाले पांव का भी तो सफ़र रुकता नहीं
सोच कर अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
----
इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4

 

इस जहां को मोहती है चंद सिक्को की खनक,
छोड़िये अपने हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
----
नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5

 

आग ही बाँटा किये जो नफ़रतों की भीड़ में
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
----

आप इसके आगे और भी बेहतर कर सकते हैं 

शुभ-शुभ

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 15, 2016 at 10:50am
आपके इस्लाह के बाद कुछ तब्दीलियां की है जिसे एक बार देखने का कष्ट करें आदरणीय सौरभ पांडे जी।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 15, 2016 at 9:02am
तहेदिल शुक्रिया मोहतरम सुरेश कुमार कल्याण साहिब।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 15, 2016 at 8:59am
आपका ग़ज़ल पर आना और बेशकीमती इस्लाह से नवाजना मेरे काबलियत में जरूर इजाफत करेगा जनाब सौरभ पांडे जी बेहद शुक्रिया आपका।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:04pm
आदरणीय श्री सुनील प्रसाद शाहबादी जी सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 4:14pm

मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1   

एक रूमानी सोच मतला बन कर साझा हुआ है. बढ़िया !
----
अश्क भर भर जाम मै पीता रहा हूँ दोस्तों,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2

’जाम मैं’ के कारण तनाफ़ुर का दोष बन रहा है, आदरणीय. इससे निजात पाना अभी अर्थात सीखने के इस दौर में उचित होगा. ’जाम मैं’ का उच्चारण वस्तुतः ’जाम्मैं’ हो रहा है.  ’दोस्तों’ का प्रयोग सम्बोधन की तरह हुआ है, अतः इसे ’दोस्तो’ किया जाना सही होगा.  
----
मंजिलों तक जा रहेंगे घाव से ये पग भरा,
हो बिछे जो राह भर भी खार चलने दीजिये। 3

शेर  के मिसरों में कविताई जैसा का विन्यास कई बार उलझन का कारण बन जाता है. आपका यह शेर आदरणीय इसका उदाहरण बन रहा है. मिसरों को एक सीधे-सादे वाक्य की तरह रखने का प्रयास कीजिये.

----
इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4

बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये....  क्यों साहब, मेरे हृदय में क्यों नहीं प्यार और स्नेह पलना चाहिए ? है न ? ’हमारे ही’ का प्रयोग इस शेर को इन अर्थों में नाहक व्यक्तिवाची बना रहा है.  

----
नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5

बाटते या बाँटते ? बाटना का प्रयोग कुछ शायरों ने किया और यह प्रयोग में चल पड़ा है, वर्ना सही शब्द बाँटना ही है. 

शेर के इशारे बेहतर हैं .. बधाई ..
----
बंद रखती भूख जिनकी है तिजोरी आपकी
उन गरीबो के बुझे चूल्हे तो जलने दीजिये। 6

बहुत खूब ! भाव पक्ष के हिसाब से यह शेर बहुत अच्छा बन पड़ा है. शब्दों के विन्यास को तार्किक किया जाय तो यह शेर और बोलता हुआ हो उठेगा.


आपकी ग़ज़ल से यह मंच समृद्ध हुआ है, आदरणीय सुनील शाहाबादी जी. आपका यह अभ्यासकर्म सतत बना रहे 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 2:44pm
आदरणीय समर कबीर जी आप बिलकुल सही फरमा रहे हैं इस और ध्यान बिलकुल नहीं गया शुक्रिया आपका।
Comment by Samar kabeer on September 14, 2016 at 10:36am
"बन्द रखता भूख जिनका है तिजोरी आपका"
मेरे कहने का मतलब ये है कि 'भूख'स्त्रीलिंग है, और 'तिजोरी'भी स्त्रीलिंग है तो ये मिसरा ऐसे होना चाहिये न :-"बन्द रखती भूख जिनकी है तिजोरी आपकी"
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 7:34am
जनाब समीर कबीर जी आपकी दाद के लिए दिली शुक्रिया मै प्रयास करता हूँ हर मिश्रा सहज हो अगर आपकी समझ में न आया तो ये मेरी कमी हो सकती है यहाँ शोषित और वंचित लोगों के बारे में कहने की कोशिश की थी जिनके वजह से बड़े घर और बड़े हो रहे हैं उन घरों में चूल्हे जलने भर भी मेहनताना नहीं आ पाता ।
Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:58pm
आख़री शैर का ऊला मिसरा समझ में नहीं आरहा है ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब हुई है ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजए गुणीजनों की टिप्पणियों से काफी कुछ…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से सीखने…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी  संज्ञान लेने के लिए आभार आपका सुधार कर लेती हूँ सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"‌आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  कोई तो पूछता ख़ुदा…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ.संजय शुक्ल तल्ख़,  आदाब,  अलग अंदाज है, का ग़ज़ल कहने का,और सराहनीय ग़ज़ल हुई आपकी! आ.…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए हार्दिक आभार।"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service