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आदरणीय भाई रवि प्रभाकर जी रचना पर आपके आगमन और गहन समीक्षा के लिए हार्दिक आभार .... रचना को रचने के बाद और पोस्ट करने पर रचनाकार को जितने 'लाइक' और प्रोत्साहन की आवाश्यकता होती है उतना ही एक मार्गदर्शन और त्रुटियों को बताने वाले शुभचिंतक की भी आवाश्यकता होती है. और आप जैसे उच्च कोटि के समीक्षक की टिप्पणी रचनाकार के मन को सदा ही संतुष्ट करने वाली होती है... ऐसा मेरा विश्वास है.... एक बार फिर से सादर आभार .
आदरणीय सतविंदर जी रचना पर आपकी हौसला अफजाई करती टिप्पणी के लिए तहे दिल से आभारी हूँ। सादर आभार भाई जी....
कथ्यानुरूप व पात्रानुकूल भाषाई सहजता, सरलता के साथ साथ /आखिर हथियार भी तो मैंने ही तुझे थमाया था।/ गहन पैनापन समोए हुए सार्थक लघुकथा का सृजन हुआ है जिससे आपकी प्रतिभा, कौशल व परिश्रम का प्रतिफल स्पष्ट झलक रहा है। इस लघुकथा का अन्तर्वस्तु न केवल पाठक को सजग करने में सक्ष्म है अपितु सामाजिक परिवर्तन को भी उत्साहित करता है। सार्थक व सफल लघुकथा हेतु असीम शुभकामनाएं । सादर
बहुत बढ़िया , पञ्च लाइन भी अच्छी लगी .
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