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जफा कर यूँ मुहब्बत में कभी ऊपर नहीं होते
वफा के खेत दुनियाँ में कभी बंजर नहीं होते।1।
खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ राहों में मंजिल की पड़े पत्थर नहीं होते।2।
परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़ कोई जेवर नहीं होते।3।
नहीं चाहे बुलाता हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी नैहर कहीं सागर नहीं होते।4।
यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी खेत भी यारो कभी बंजर नहीं होते।5।
सिखाए गर न होते गुर हमें भी दोस्तों ने कुछ
तेरी महफिल में हम भी यूँ बने शायर नहीं होते।6।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
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