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ग़ज़ल- काम आईँ नही दवाएँ क्यूँ

2122 1212 22

बेअसर हो गईं दवाएँ क्यूँ
काम आईं नहीं दुआएँ क्यूँ

हम ग़लत फ़हमियों में आएँ क्यूँ
दोस्त है वो तो आज़माएँ क्यूँ

आँख तक आँसुओं को लाएँ क्यूँ
ज़ब्त की एहमियत गिराएँ क्यूँ

साँस दर साँस एक ही सरगम
दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ

जिसके सीने में दिल हो पत्थर का
उसकी चौखट पे गिडगिडाएँ क्यूँ

वक्त आने पे जान जाएगा
इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ

हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर
कोई सुनता नहीं सदाएँ क्यू

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Rahul Dangi Panchal on May 18, 2016 at 10:13pm
शुक्रिया आशुतोष जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 18, 2016 at 4:41pm

आदरणीय राहुल जी ..बहुत दिनों के बाद मंच से जुड़ने का मौका मिला ..आपके सुंदर रचना को पढने का भी मौका मिला ..इस रचा के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

साँस दर साँस एक ही सरगम
दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ यह शेर बहुत भाया इसके लिए भी बधाई 

Comment by Rahul Dangi Panchal on May 17, 2016 at 8:24pm
शुक्रिया आदरणीय अनुज जी
Comment by Anuj on May 17, 2016 at 8:20pm

हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर
कोई सुनता नहीं सदाएँ क्यू

आदरणीय राहुल जी,

जिस बहरे वक्त में हम जी रहे है उसके लिए ये बेहद सामयिक शेर है.उम्मीद हैआगे भी हमें ऐसे जौहर मिलते रहेंगे.

सादर

Comment by Rahul Dangi Panchal on May 17, 2016 at 1:24pm
आदरणीय मिथिलेश जी शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 17, 2016 at 12:36pm

आदरणीय राहुल भाई जी, बहुत दिन बाद आपकी ग़ज़ल पढने का अवसर मिला है. बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 9:46pm
शुक्रिया आदरणीय गोरखपुरी भाई जी
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2016 at 9:36pm
वक्त आने पे जान जाएगा
इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ

वाह!बहुत खूब!हार्दिक बधाई आ.राहुल डांगी जी।
Comment by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 4:39pm
शुक्रिया आदरणीया राहिला जी
Comment by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 4:38pm
शुक्रिया आदरणीय समर साहब

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