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एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज पर तुझको देखना है मुझे
त्र में उसने ये लिखा है मुझे

स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे

क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल   
ब्र करना तो आ गया है मुझे

ज तेरे बग़ैर ये जीवन
र्क जैसा ही लग रहा है मुझे

लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
श्क़ तेरा बुला रहा है मुझे

र्म गुफ़्तार से "समर" देखो
आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे

_________

ओज :- ऊँचाई
नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
बुर्ज :- गुम्बद
गुफ़्तार :- बोलचाल

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by TEJ VEER SINGH on May 2, 2016 at 7:54pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!सुंदर गज़ल!

ज तेरे बग़ैर ये जीवन
र्क जैसा ही लग रहा है मुझे

लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
श्क़ तेरा बुला रहा है मुझे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 7:21pm

वाह वा ! वाह वा ! 

ये ग़ज़ल तो अपने मिसरों के बरअक्स दीवान का मज़ा दे रही है, आदरणीय समर साहब ! सुभान अल्लाह ! आपकी नेक-नज़र ऐसे ही बनी रहे .. शुभकामनाओं और बधाइयों के साथ सादर धन्यवाद !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 2, 2016 at 7:13pm

वाह वाह वाह !!! 

हर मिसरे का पहला अक्षर देखें, "ओपनबुक्स आनलाइन" बन रहा है !! आफरीन मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब !!   

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