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1222-1222-1222-1222 

दिवाना आप का होकर फिरे वो यार बरसों से
लिए फिरता है दिल में वो तो तेरा प्यार बरसों से

हुआ है ज़िक्र महफ़िल में उसी की बात का लेकिन
बना रहता है वो मजनू करे दीदार बरसों से


अदालत ये अनोखी है जहाँ पे झूठ चलता है
हुए कैदी मिली फांसी जो थे सरदार बरसों से


जरा दिल की सुनो तो जी बड़ा मासूम भोला है
पड़ा धोखे में जाकर ये लुटा घर बार बरसों से


मेरे मौला सफर में हूँ अता कर फ़िक्र ना मुझको
दे वो ढूँढा फिरूं जिसको मैं तो हर बार बरसों से


मुनीश 'तन्हा'...नादौन..
9882892447


मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 11:23pm

भाई मुनीषजी, आप आ. नीलेश जी की बातों का संज्ञान लें. ग़ज़ल पर काम करना रुचिकर है. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 11:48am

दिवाना आप का होकर फिरे वो यार बरसों से.....आप (सम्मानसूचक) के बाद यार (बहुत क़रीबी)  आने से थोडा खटक रहा है..फिर नीचे तेरा आने से शतुर्गुरबा हो रहा है.. दीवाना में दी लघु पढ़ सकते हैं केलिन लिखते समय दीवाना ही लिखें ..
बाक़ी अशआर भी समय माँग रहे है ...थोड़ा वक़्त और दीजिये... 
सादर 

Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:37pm

आदरणीय मुनीश जी ग़़ज़ल के सुन्‍दर प्रयास के लिये बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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