For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तलवार (लघुकथा)

जैसे ही कई वर्ष पुरानी तलवार को उस वीर ने म्यान से बाहर खींचा तैसे ही उस जंग लगी तलवार के सोये अरमान फिर से जाग उठेऔर उसने चाहा कि उसे फिर एक बार पहले सा सम्मान,प्रेम प्राप्त हो जो पहले उसे राजा के हाथ में आने के बाद मिलता था। उसे याद हो आये वो दिन जब युद्ध में सिपाहियों को पाट पाट कर वो अचानक ही अपने राजा की प्रधान प्रेयसी बन जाती थी। उसके मुख पर एक कुटिल मुस्कुराहट छाई व मन में एक आकांक्षा जागी वही युद्ध, वही सम्मान! काश ! वीर ने उसे बुझे मन से देखा व सान धरने वाले के पास ले गया। उसने तलवार उस व्यक्ति को दिखाई फिर इशारे से कुछ समझाया व उसे दे दी। तलवार खुश सान लगाने वाले पत्थर से उसकी बड़ी पुरानी पहचान थी। सान लगाने वाले ने तलवार तैयार कर के रख दी ।तलवार को तो पता भी नहीं चला कि इस बार उसपर धार चढवाने नहीं बल्कि उतरवाने रखा गया है। वह तो केवल खुश थी कि अब उसे फिर से गर्म लहू चखने को मिलेंगा ।पत्थर उसकी खुशी देख हँस पड़ा ।मगर तलवार घमन्ड किए जा रही थी। म्यान में रखी खुशी से फूले जा रही थी। किसी के आने की आहट हुई वही वीर आया व मन ही मन बड़बड़ाया ,"बस अब ठीक।" और वह उसे लेकर घोड़े पर सवार हो घर जाने लगा।तलवार की यह आवाज़ भी जानी पहचानी थी।उसे फिर से उम्हास हो रहा था मगर शीघ्र ही वे घर पहुँच गए।उसने वह तलवार म्यान से बाहर निकाली व ढाल में घोप दी व कुछ अनमने से होकर वह तलवार सेवक को दीवार पर लगाने के लिये सौंप दी।और उससे बोला," देखो ये हमारे दादा जी की तलवार है इससे उन्होंने बहुत से युद्ध जीते मगर हम आज इसकी धार उतरवाकर लाए हैं।
वे अपने आखिरी दिनों में बहुत रोया करते थे और कहा करते थे ये सब कुछ इस तलवार के कारण ही हुआ है और उनकी आकांक्षा थी कि उनकी इस तलवार को कोई हाथ ना लगाए।उन्होने सबको ताकीद की थी कि कोई भी युद्ध ना करे और किसी को भी किसी पर विजय प्राप्त करने के लिए इसका सहारा न लेना पड़े साथ ही उन्होंने कहा इस तलवार को बिन धार की बना दीवार पर लगा दिया जाए जिससे ये किसी को ना लीले।"
आज मैंने उनकी इच्छा पूरी की है। ये जालिम है,अपने पराये का भेद नहीं करती। मेरे पिता ने इससे ही अपने पिता का कत्ल किया था। अब इसकी यही गति है। जब तलवार को असलियत पता चली तो वह थर थर काँपने लगी अपने किये पर शर्मिंदा होने लगी व ढाल से बोली,"जाने मैं क्यों जन्मी ।" और वह सेवक के हाथों नीचे गिर गई और उसके दो टुकड़े हो गए।

.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 989

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 8, 2016 at 8:52pm
ज़बरदस्त ट्विस्ट लिए अनुपम भाव संयोजन युक्त रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया ममता जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस विधा पर आपका अभ्यास श्लाघनीय है. किंतु आपकी प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service