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कहो कुछ तो समझ के भी जताते और ही कुछ हैं
अदीबों की ज़ुबाँ में कुछ , इरादे और ही कुछ हैं
रवादारी हो , रस्में या कोई हो मज़हबी बातें
अलग ऐलान करते हैं, सिखाते और ही कुछ हैं
उन्हें मालूम है सच झूठ का अंतर मगर फिर भी
दबा कर हर ख़बर सच्ची , दिखाते और ही कुछ हैं
जो क़समें दोस्ती की रोज़ खाते हैं, बिना पानी
जरा सी आड़ मिल जाये , निभाते और ही कुछ हैं
गिज़ा जिस मुल्क से पा के, मिली हाथों को मज़बूती
उन्हीं हाथों से परचम वो , हिलाते और ही कुछ हैं
वो सारे बे अदब निकले, अदीबों में जो थे शामिल
सभी उन पारसाओं के , निशाने और ही कुछ हैं
बबूलों के जने हैं जो , महज़ कांटे बिखेरेंगे
दिखा कर फूल के पौधे , उगाते और ही कुछ हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये |
आदरणीय गिरिराज सर, आपने कमाल की ग़ज़ल कही है, लाजवाब .... एक एक अशआर लाज़वाब हुआ है. इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
कहो कुछ तो समझ के भी जताते और ही कुछ हैं
अदीबों की ज़ुबाँ में कुछ , इरादे और ही कुछ हैं .............. लाज़वाब मतला हुआ है
रवादारी हो , रस्में या कोई हो मज़हबी बातें
अलग ऐलान करते हैं, सिखाते और ही कुछ हैं............... बिलकुल सही
उन्हें मालूम है सच झूठ का अंतर मगर फिर भी
दबा कर हर ख़बर सच्ची , दिखाते और ही कुछ हैं ................ शानदार शेर
जो क़समें दोस्ती की रोज़ खाते हैं, बिना पानी
जरा सी आड़ मिल जाये , निभाते और ही कुछ हैं................ वाह वाह वाह
गिज़ा जिस मुल्क से पा के, मिली हाथों को मज़बूती
उन्हीं हाथों से परचम वो , हिलाते और ही कुछ हैं................. सही बात
वो सारे बे अदब निकले, अदीबों में जो थे शामिल
सभी उन पारसाओं के , निशाने और ही कुछ हैं ................... कमाल का शेर
बबूलों के जने हैं जो , महज़ कांटे बिखेरेंगे
दिखा कर फूल के पौधे , उगाते और ही कुछ हैं.................. बेहतरीन
'और ही कुछ हैं' जैसी कठिन रदीफ़ को इतनी सहजता से निभा लिया आपने. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
बबूलों के जने हैं जो , महज़ कांटे बिखेरेंगे
दिखा कर फूल के पौधे , उगाते और ही कुछ हैं
खूबसूरत अहसासों की खूबसूरत ग़ज़ल … वाह वाह और वाह ही कहेंगे हम इस पेशकश पर .... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आदरणीय गिरिराज सर वाह वाह। बेहतरीन बेजोड़।
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