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गज़ल - बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख - गिरिराज भंडारी

22  22  22  22  22  22    

 

कोई दीप जलाओ, कि अँधेरा यहाँ न हो ।

कभी रोशनी की बात चले तो गुमाँ न हो ।।

 

जो शय बढ़ा दे दूरियां उसको खुदी कहें ।

हर हाल में कोशिश रहे, ये दरमियां न हो ।।

 

है फ़िक्र ये कि पंछी उड़ें किस फलक पे अब।

ऐसा भी  ख़ौफ़नाक  कोई आसमाँ न हो ।।

 

उजड़ीं है कई आंधियों में बस्तियां मगर ।

जैसे ये घर उजड़ गया, कोई मकाँ न हो ।।

 

मंज़िल से जा मिले जो कभी राह तो मिले।

रस्तों में चाहे संग मिलें कहकशाँ न हो ।।

 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।

 

हाँ, इस जहाने फानी में महमान हैं सभी,  

लेकिन ख़ुद अपने घर में कोई मेहमाँ न हो

***************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 20, 2015 at 7:38am

आदरणीय सौरभ भाई , एक शे र भी आपकी पसंदगी के पैमाने मे खरा उतरे तो गज़ल कहना सार्थक हो जाता है , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2015 at 10:15pm

आखिरी शेर के बरअक्स आपकी ग़ज़ल को झूमता हुआ पढ़ गया आदरणीय गिरिराज भाईजी. 

दाद दाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 10:00am

आदरणीया कल्पना जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:59am

आदरणीय बैजनाथ भाई , हौसला  अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:58am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपके अभ्यास की सराहना को करनी ही पड़ेगी , क्या बात है । बुरा मनना , और माफी की भाषा अब तो छोड़ दीजिये , आप तो मुझे अच्छे से जानते हैं ।

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख के मन आनन्दित है ।  आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:55am

आदरणीय रवि भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थति  और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:53am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

इस बहर मे  --  22  मात्रा को   112   , 211   , 121   कर लेने की छूट होती है , बस शर्त ये है कि  लय न टूटने पाये ,  गिनते समय उसे       22   ( फेलुन ) गिना जाता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2015 at 9:50am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , गज़ल की सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 17, 2015 at 5:47pm

आदरणीय गिरिराज साहेब  बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है| ......बधाई 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 17, 2015 at 4:05pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. आपने फैलुन फैलुन की आवृत्ति में प्राप्त छूट लेते हुए शानदार ग़ज़ल कही है. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. आपने जिस चतुराई से इस बह्र को निबाहते हुए अशआर कहे है वो अद्भुत है. इन मिसरों में कहीं भी पूरा चौकल नहीं बन पा रहा है या बनता है तो द्विकल छूट जाता है. फिर भी कही भी गेयता बाधित नहीं हो रही है. क्योकि आपने एक और बह्र को भी कुछ अशआर में पूरी तरह निभा लिया है. वो बह्र है- 221 - 2121 - 1221 - 212

मैंने केवल अभ्यास के क्रम मतले और एक दो मिसरों में तनिक छेड़छाड़ की है इस हिमाकत के लिए माफ़ी सही निवेदन कर रहा हूँ-

 

221 - 2121 - 1221 - 212

इक दीप जलाओ अँधेरा यहाँ न हो ।

अब रोशनी की बात चले तो गुमाँ न हो ।।.............. शानदार मतला (ओरिजनल वाला)

          

जो शय बढ़ा दे दूरियां उसको खुदी कहें ।

हर हाल कोशिशें रहें, ये दरमियां न हो ।।......... बढ़िया शेर 

 

है फ़िक्र ये कि पंछी उड़ें किस फलक पे अब।

ऐसा भी  ख़ौफ़नाक  कोई आसमाँ न हो ।।...................... बढ़िया शेर 

 

उजड़ीं है कितनी आंधियों में बस्तियां मगर ।

जैसे ये घर उजड़ गया, कोई मकाँ न हो ।।............. वाह वाह 

 

मंज़िल से जा मिले जो कभी राह तो मिले।

रस्तों में चाहे संग मिलें कहकशाँ न हो ।।................. बहुत खूब 

 

बे आसरा बना के हमें तू खिजा में रख ।

लेकिन जो बाग़ लूट ले वो बाग़बाँ न हो।।............ शानदार 

 

हाँ, इस जहाने फानी में महमान हैं सभी,  

लेकिन ख़ुद अपने घर में कोई मेहमाँ न हो...........बहुत बेहतरीन शेर 

इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर 

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