"दद्दा, आपने यह जो सम्मान पत्र स्वर्णिम फ़्रेम में लगवा रखा है, इसकी वापसी की बोली तीन लाख सत्तर हज़ार तक पहुंच गयी है!अब और क्या चाहिये!कमा लो, बढिया मौका है!कुछ बच्चों के काम आयेगा!वैसे भी अब आप तो साल दो साल के मेहमान हो!फ़िर तो यह भी रद्दी हो जायेगा"!
"बक़वास बंद करो, नहीं तो दैंगे दो जूते खींच के"!
"जूते भले ही दो की ज़गह चार मार लो, पर यह बहती गंगा में हाथ धोने का अवसर मत छोडो"!
"हम शेर हैं, हम भेड बकरी नहीं जो इस भेड चाल में शामिल हो जांय"!
"दद्दा यह कोई अकलमंदी नहीं है, समय के साथ चलना चाहिये"!
"तुम अब्बल दर्जे के बेवकूफ़ हो, हम तुमसे ज्यादा तज़ुर्बेकार हैं, हमारे पास इससे भी तगडा ऑफ़र आया है”!
“जल्दी बताइये दद्दा,किसकी तरफ़ से और क्या ऑफ़र आया है”!
“यह आफ़र एक मीडिया चैनल वालों की तरफ़ से आया है”!
“दद्दा, ऑफ़र क्या है ,यह भी तो बतलाइये" !
“ उनका ऑफ़र है, कि यदि हम अपना सम्मान पत्र नहीं लौटायेंगे तो वे हमें पांच लाख दैंगे”!
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मौलिक व अप्रकाशित
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हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!
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