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व्यंग्य कविता -"एक बूंद पानी की कीमत "

बिन पानी के अभी से मच रहा,सब ओर हाहाकार।
मई-जून में आयेगा मजा,जब मुंह सूखे लार ।।
नदी,कुंये,ताल का,हो जायगा बुरा हाल ।
पानी के लिये मारामारी,होगी अब की साल ।।
खूब धो रहे घर आंगन, और कर रहे बरबाद पानी।
आटा सानने नहीं मिलेगा,खूब कर लो मनमानी ।।
नहाओ-नहाओ सांझ सबेरे,पर कभी आगे का सोचा ।
गमछा गीला करके बदन पर,लगाना पड़ेगा पोंछा ।।
जो नहा ना पायें बहुत दिनों तक,तो आयेगी ऐसी बास।
कहीं मर गया चूहा या, कहीं सड़ गयी लाश ।।
पटक -पटक के कसेंड़ी बर्तन, होगी खूब लड़ाई ।
इधर खड़ी पंडितायन होगी,उधर मंगू की लुगाई ।।
अभी से बचा लो पानी भैया,इस में सब की भलाई ।
वरना बाद में ना कहना,पहले ये बात ना बताई ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on October 28, 2015 at 2:33pm
बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी! मैं पूरी कोशिश करूगीं अगली रचना पर नियमानुसार लेखन की ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 1:35pm

आदरणीया राहिला जी सन्देश देती बढ़िया प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई 

आदरणीया राजेश दीदी की इस्लाह पर रचना खिल उठेगी. सादर 

Comment by Rahila on October 27, 2015 at 10:12pm
बहुत -बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी! आपने मार्ग दर्शन देकर मेरी दुविधा का निदान कर दिया । मैं समझ नहीं पा रही थी कि सही तरीके से कैसे लिखू । पुनः धन्यवाद स्वीकार कीजिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 8:18pm

अच्छी विषय पर कलम चलाई है राहिला जी भविष्य की चिंता होना लाजिमी है पानी बचाओ का अच्छा सन्देश दे रही है कविता हास्य व्यंग पर लिखी इस कविता के लिए हार्दिक बधाई आपको| आप इसी रचना को दोहा छंद  में आराम से लिख सकती हैं छंद समूह में सब विधान लिखा है प्रयास कीजिये आप लिखने लगेंगी |

Comment by Rahila on October 26, 2015 at 7:02pm
आद. कांता दी! बहुत आभार इस प्रशंसा के लिये । परन्तु उतनी सटीक रचना नहीं बन पाई । अभी बहुत मेहनत करनी होगी ।लेकिनआपकी हौसला अफज़ाई से मुझे जो हौसला मिला उसके लिये पुनः आभार, शुक्रिया आपका ।
Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 6:01pm

नहाओ-नहाओ सांझ सबेरे,पर कभी आगे का सोचा ।
गमछा गीला करके बदन पर,लगाना पड़ेगा पोंछा ।।----हा हा हा हा --मुझे तो लगता है की पडोशी के घर का बहता हुआ पानी आपकी कविताओं में आ छुपा है।  बधाई हो आपको आदरणीया राहिला आसिफ जी  इस चिंतनशील ज्वलंत विषय पर लेखन करने हेतु। 

Comment by Rahila on October 26, 2015 at 1:19am
बहुत आभार आदरणीय समर कबीर जी । बहुत धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on October 25, 2015 at 11:35pm
मोहतरमा राहिला जी,आदाब,आज पहली बार आपकी कविता से रूबरू हो रहा हूँ,और ओबीओ परिवार में आपका स्वागत करता हूँ,आपकी कविता अच्छी लगी लेकिन मेरे नज़दीक अभी आपको अपने क़लम पर और धार लगाना होगी ,कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें ।
Comment by Rahila on October 25, 2015 at 6:52pm
बहुत आभार मनोज कुमार जी । मैं भी यही चाहिती हूं कि कुछ सीखने को मिले ।
Comment by मनोज अहसास on October 25, 2015 at 4:58pm
बहुत बधाई
आपको इस रचना के लिए
मंच के छंद के विशेषज्ञ यदि इस रचना पर अपने विचार दे दें
तो आपके लिए बहुत लाभदायक होगा
शुभकामना
सादर

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