महकती ज़िन्दगी हो फिर शिकायत कौन करता है
बिना कारण ही मरने की हिमाकत कौन करता है
तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है
बड़े काबिल हो तुम लेकिन तुम्हारी जेब है खाली,
भला ऐसों से भी यारा मुहब्बत कौन करता है|
कड़कती धूप भी सहते कभी बरसात ठंडी भी,
खुदा ऐसों पे तेरे बिन इनायत कौन करता है|
न पूजेगा कोई तुमको खुदा गर सामने आया ,
बिना डर और लालच के इवादत कौन करता है|
बने हैं बापू के बन्दर हमारे देशवासी सब,
हुकूमत के भला आगे बगावत कौन करता है|
शरीफों में मेरा भी नाम ‘मिंटू’ कर ले तू शामिल,
कि मैं भी तो जरा देखूं शराफत कौन करता है|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
गिरिराज भंडारी साहेब जी .............. बहुत -बहुत शुक्रिया आपका|
आदरणीय बैज नाथ भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
कांता जी ......... शुक्रिया|
मनोज अहसास जी---- शुक्रिया|
तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है----लाज़वाब शेर बन पड़ी है इस ग़ज़ल में सारे के सारे। बेहतरीन ,बधाई BAIJNATH SHARMA'MINTU' जी।
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