आज उस के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी । परनीत को लगा जैसे सपना पूरा हो रहा हो । परिवार में ख़ुशी और उदासी दोनों एक साथ नजर आई। पहले जब वो बगैर वीज़ा लोटा तो कई दिन वह उदास रहा था,उसे लगा शायद वह जा न पाऐगा, मगर ऐजेंट ने हौसला देते हुए पूरा यकीन दिलाया था कि बैंड भी पूरे और खाते में बनती रकम भी जमा हो गई है । पर इस बार वीज़े के साथ जाने की टिकट मिल गई । जैसी हवा चली हर कोई , अब तो पूरे एवन्यू में कोई ऐसा घर नहीं जिस में परनीत की उम्र का कोई लड़का हो । परनीत के ज्यादातर साथी भी स्टूडेंट वीज़ा से बाहर जा चुके थे और कुछ को पी. आर भी मिल गई। घर के लोग चाहते तो न थे कि उसे भेजें ,इतनी बड़ी रकम का प्रबंध करना और घर को संभालने वाला भी न रहना। मगर आखिरकार परनीत की ज़िद के आगे सब झुक गए ।
सब के लिए सवाल तो यह भी खड़ा हो गया था, जैसे वो पढाई में था । यहाँ उसे अच्छी संस्था में दाखले की उम्मीद न थी । फिर सोचा गया अगर पैसा लगना हैं तो क्यों न स्टडी वीज़ा से पढ़ाई की जाए ,क्या पता बाद में पी. आर मिल जाए । चाहे मास्टर सुरिन्दर की बातें सुन उसके मन में दुविधा चल रही थी,जब उसने कहा उसका लड़का अमेरिका पढ़ रहा है, तो उसे लगा जैसे वह उस से बहुत बड़ा हो गया हो । इस बात ने उसे अंदर से हिला दिया जब उस ने कहा "इस २० तारीख को उसके भतीजे का गोरों ने गोलीयां मार कत्ल कर दिया मगर अब तो जाने के तैयारी चल रही है" ।
अचानक शाम को छोटे भाई का गाँव से फोन आया कि परनीत के दादा जी की तबियत अचानक बिगड़ गई है और पता नहीं कब...., उसी समय वह गाँव की तरफ चल पड़े,अभी घर की दहलीज़ पाँव रखा,छोटा उठ उससे लिपट गया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा ।
रात के दस बज चुके थे, कल दिल्ली से १२ बजे परनीत की फलाईट भी।उसके पास बैठे रिश्तेदारों ने आखिर फैसला यह लिया कि आग तो तुझे ही दिखानी होगी । मगर इस लिए लाश को अभी तो हस्पताल की मोर्चरी में रख देते हैं । जब आप दिल्ली से वापस आयंगे तो संस्कार होगा ........।
शहर के हस्पताल की मोर्चेरी में लाश को रख ,वो सीधा घर आया, परनीत जाने के लिए पहले से तैयार था । दोनों अंदर बैठे और टैक्सी दिल्ली की तरफ चल पड़ी, उसे ऐसे लगा जैसे बाप इस दुनिया को आखिरी सलाम और परनीत इस धरती को आखिरी सलाम कह कर पी. आर. पाने के लिए जा रहा हो ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरनीय भाई , बहुत भावुक कर दिया आपकी कथा ने , आपको दिली बधाइयाँ ।
बहुत भावुक करती रचना , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मोहन जी
दोनों तरह की विदाई के अपने-अपने अर्थ हैं ?
लघुकथा की प्रस्तुति केलिए शुभकामनाएँ
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर इस सशक्त और संवेदना जगाती रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
//मगर इस लिए लाश को अभी तो हस्पताल की मोर्चरी में रख देते हैं । जब दिल्ली से वापस आयंगे तो संस्कार होगा ........।//दिल को छूती हुई , ओह ! अपने -अपने हिट को साधते आज के युवा मन के संवेदनाओं की जमीनी हकीकत बयां करती एक सुन्दर रचना आदरणीय मोहन जी । इस सुंदर लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें ।
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