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मील के पत्थर ....

मील के पत्थर....

पत्थर पर तो हर मौसम
बेअसर हुआ करता है
दर्द होता है उसको
जिसका सफ़र हुआ करता है
सिर्फ दूरियां ही बताता है
निर्मोही मील का पत्थर
इस बेमुरव्वत पे कहाँ
अश्कों का असर हुआ करता है
हर मोड़ पे मुहब्बत को
मंजिल करीब लगती है
हर मील के पत्थर पे
इक फरेब हुआ करता है
कहकहे लगता है
दिल-ऐ-नादाँ की नादानी पर
हर अधूरे अरमान की
ये तकदीर हुआ करता है
कितनी सिसकियों से
ये रूबरू होता है मगर
पत्थर तो पत्थर है
ये अपनी तासीर से
मजबूर हुआ करता है

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on August 11, 2015 at 8:46am
आ0 सरना जी बहुत ही उम्दा रचना से नवाज़ा है आपने । दिली दाद वसूल पाइएगा । साभार ।।।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 11:07pm

आदरणीय सुशील सरना सर, पत्थर प्रतिक लेकर बहुत गहन विचारों को शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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