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ग़ज़ल- काश अपना भी घौंसला होता।

२१२२ १२१२ २२

काश अपना भी' घौंसला होता।
मैं किसी घर का' लाडला होता।

माँ पिता जी की' गोद में मैं भी।
खेलता कूदता पला होता।

वासना को कहें मुहब्बत सब।
अब नहीं इश्क बावला होता।

शक्ल से तो बडा भला है वो।
काश दिल से जरा भला होता।

उम्र तन्हाँ न यूँ गुजरती गर।
इक कदम का भी' हौसला होता।

मैं न कहता कभी खुदा से दोस्त।
आज इंसाफ अगर चला होता।

शुक्र है वो यहाँ नहीं वरना।
जलजला और जलजला होता।

इस जमीं तक कभी न आता मैं।
इश्क में जो नहीं जला होता।

श्याम काले थे' राम जी काले।
रंग मेरा भी' साँवला होता।

नफरतों से भरा जहाँ 'राहुल'।
अच्छा' होता कि खोखला होता।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Rahul Dangi Panchal on July 27, 2015 at 7:39am
आदरणीय समर कबीर साहब जी ओबीओ मंच का स्नेह है सब । बहुत बहुत आभार आपका
Comment by Samar kabeer on July 26, 2015 at 11:45pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,आपकी ग़ज़लों पर इन दिनों जो निखार आया हुवा है इससे साबित होता है कि आपकी तवज्जो ग़ज़ल की तरफ़ बहुत ज़्यादा है और आपने ख़ुद ही अपनी शाइरी करने का सबब बता दिया है,इस अच्छी ,शानदार और ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

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