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दिल आज उदास है // कान्ता राॅय

आईये पास कि दिल आज उदास है
आपकी आस में दिल आज उदास है

याद का भँवर उडा ले चला इस कदर
थाम लीजिए मुझे दिल आज उदास है


हाथ में आपकी हैं छुअन सी लगीं
घटा को देख फिर दिल आज उदास है


दिल का धडक जाना आपके नाम से
बदलियों को देख दिल आज उदास है


छतरी में सिमटना एक ठंडी शाम में
यादों में तनहा दिल आज उदास है

रूहानी तलाश रूह की जैसी प्यास
ढुंढना आस पास दिल आज उदास है

पूछना मुझसे नाम मेरे यार का
सिसकती दास्तान दिल आज उदास है

सपनों की मंडियाँ बिकते हुए सपने
देख कर तमाशा दिल आज उदास है

चाँदनी की चकमक चाँद का चमकना
खनकती चुड़ियाँ दिल आज उदास है

ख्वाहिश तुम्हें क्यों पर्दा नशी की
कर दे फना इश्क दिल आज उदास है

रिश्तों को तोलना बाजार क्या है
रौंदना इस कदर दिल आज उदास है

यादों की बूंदें गीला सा मन मेरा
नमकीन बरसात दिल आज उदास है


सूनी सी डगर गाँव के चौपाल में
चुप्पी हवाओं की दिल आज उदास है

इंतजार पल पल क्यों करें दिल मेरा
मुड़कर ना देखना दिल आज उदास है


सतरंगी सपना पलना युँ बार बार
ऐतबार क्युं कर दिल आज उदास है




कान्ता राॅय
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:01am
हा हा हा हा ... क्या खूब कही है आपने दिल विल की बातें आदरणीया प्रतिभा जी ! मजा आया आपकी प्रतिक्रिया पढकर । आभार आपको हृदयतल से ।
Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 11:51am

कांता  जी ,  ये   दिल विल ऐसा  ही होता है ,  कभी बेवज़ह  उदास रहता है   तो  कभी  हँसते हँसते ढेरों ज़ख्म सह लेता है    I  दो  बधाईयाँ  आपको  एक  तो  रचना  के  लिए और दूसरी  सक्रीय  सदस्य  के लिए I  

Comment by kanta roy on July 16, 2015 at 7:44am
रचना पसंदगी के लिये तहे दिल से आभार आपको आदरणीय गिरीराज भंडारी जी । पद्य के तकनीकों से अनजान होने के कारण ऐसी कमजोर रचना कर जाती हूँ । लिखने की चाह मेरी मुझे विवश कर जाती हैै कुछ भी लिखने को । नमन
Comment by Archana Tripathi on July 16, 2015 at 7:43am
माह की सक्रीय सदस्य बनने पर हार्दिक बधाई कांता जी ।
Comment by kanta roy on July 16, 2015 at 7:41am
वाह !!!! आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपने तो लचर -पचर कविता में जैसे प्राण फूंक दिया । बहुत कुछ समझा गये आप इसको सुधार कर । लेखन के तकनीक को मेरे ही रचना के माध्यम से मुझे बताना बहुत ही अच्छा लगा । आभार आपको तहे दिल से ।मेरी आशा बढ़ गई है अब आपसे कि आप मेरी रचनाओं पर मुझे सार्थक मार्गदर्शन देंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:29am

आदरनीया कांता जी , विरह का खूब वर्णन किया है , आपने द्विपदीय रचना के माध्यम से  । मात्रा और शब्द संयोजन सभी पंक्तियों मे एक न होने के कारण गेयता मे कभी लग रही है । आपको रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 4:47am

आदरणीया कांता जी शृंगार में बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

यदि आप चाहे तो इसे तुकांत गीत या कविता में भी कह सकते है जो आपकी प्रस्तुति के शब्दों के हेर फेर से प्रयास किया है. यथा-

पास आ जाओ, अगर दिल हो, जो उदास कभी  
ना रही आस, हुआ दिल ना फिर उजास कभी

उड़ा के ले चला यादों का भंवर, मुझको ही

लगी घटा भी छुअन, जैसे तेरे हाथों की
थाम ले ऐसे, बंधे फिर से, वही आस कभी  

पास आ जाओ, अगर दिल हो, जो उदास कभी  


इक हसीं शाम को छतरी में सिमटना अपना
आस की प्यास में शबनम सा मचलना अपना

पूछना मुझसे मेरा नाम या कयास कभी

पास आ जाओ, अगर दिल हो, जो उदास कभी

   

 

चाँदनी चकमक करे चाँद चमक जाता है
खनकती चूड़ी से दिल रह-रह भर आता है

याद की दुनिया से मिल जाए फिर निकास कभी

पास आ जाओ, अगर दिल हो, जो उदास कभी  

Comment by babita choubey shakti on July 15, 2015 at 3:28pm
Bahut sundr bhavpurn rachna aa .kanta ji badhai
Comment by kanta roy on July 15, 2015 at 9:48am
आदरणीया शशि जी , आपकी प्रोत्साहन भरे शब्द मेरे हौसलों को बढा जाते है । जाने क्या लिख जाती हूँ ....जाने क्या कह जाती हूँ .. बन जाती है बात कोई ... पोस्ट भी कर जाती हूँ .....आभार ॥
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:07pm
आद0 कांता जी बहुत सुन्दर गेय और भावों से भरी कविता रची है । हार्दिक बधाई आपको । सादर ।

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