For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - बेचारा भ्रष्टाचार !

देश, भ्रष्टाचार की आग में तप रहा है और भ्रष्टाचारी एसी की ठंडकता का मजा ले रहे हैं। इस छोर से लेकर उस छोर तक केवल भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे चुप बैठे हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार भ्रष्टाचार होने की बात उजागर हुई है, उससे भ्रष्टाचार का रूतबा बढ़ना स्वाभाविक लगता है, मगर जिनके कारण भ्रष्टाचार का जन्म हुआ है, उन्हें तो हम भुला दे रहे हैं ? केवल भ्रष्टाचार पर ही ठिकरा फोड़ रहे हैं, जबकि सब किया धराया तो उन सफेदपोशों का है, जो देश के खजाने को जब चाह रहे, तब खोखला करने तुले हैं। जिस तरह सरकार के सामने जनता खिलौना बनकर रह गई है, कुछ उसी तरह की स्थिति भ्रष्टाचार के समक्ष भी निर्मित हो गई है, क्योंकि समस्या की असली जड़ तो सफेदपोश भ्रष्टाचारी ही हैं। जो भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बच निकल रहे हैं। ऐसा लगता है कि यहां जनता के पास कोसने के लिए जैसे भ्रष्टाचार को फ्री कर रखे हैं।

मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के प्रति हम सब का सहानुभूति होनी चाहिए, क्योंकि जब हम भ्रष्टाचारियों की करतूत को भूल जाते हैं और सफेदपोश भ्रष्टाचारी, लोगों की आंखों का तारा बने फिरते हैं। वे जब चाहते हैं, तब सत्ता की कुर्सी पर काबिज होते हैं और भ्रष्टाचार कर हमारी छाती पर मूंग दलते हैं। फिर भी हम कहां सड़क पर उतरते हैं ? कब हम विरोध की सोचते हैं ? ऐसे में भ्रष्टाचार को कैसे हम पूरी तरह दोष दे सकते हैं ?

भ्रष्टाचार का काला साया का असर हर जगह नजर आता है। दिन हो या फिर रात, भ्रष्टाचार का भूत कहीं भी सफेदपोशों पर सवार रहता है। आखिर भ्रष्टाचारियों की हिम्मत इतनी बढ़ क्यों रही है ? जाहिर सी बात है, जनता जनार्दन यही सोच रही है, मेरा क्या जाता है ? यही बात हर किसी के दिमाग में है और भ्रष्टाचारी मजे कर रहे हैं। जब पानी सिर से उपर जाने के हालात बने हैं तो अब हम भ्रष्टाचार को दोष दे रहे हैं। भला, जनता का पैसा लुट रहा है और वहीं हम चुप हैं तो इसमें बेचारा भ्रष्टाचार को कटघरे में खड़े करने का क्या मतलब ? यहां तो वही बात हो रही है, करे कोई और भरे कोई। भ्रष्टाचारी अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं और देश के खजाने को चूना पर चूना लग रहा है, बावजूद हमारी आंखें नहीं खुल रही है। इस परिस्थिति में हमें बेचारे भ्रष्टाचार की बेचारगी पर तरस खानी चाहिए।

वैसे भी हमें माफ करने की पुरानी आदत है। भ्रष्टाचार भी हमारे सामने आकर क्षमायाचना करे तो हमारा दिल पिघलना ही चाहिए और उसे माफ करने, एक भी पल का संकोच नहीं करना चाहिए। एक बात है, जनता खुद पर तरस खाती नहीं दिख रही है, ऐसा होता तो बरसों से बंद जुबान जरूर खुलती। भ्रष्टाचारी तो एसी में ऐश को कैस करने कोई भी पल नहीं गंवा रहा है और भ्रष्टाचारी आंकड़ों पर भी चार चांद लगा रहे हैं। मैं तो भ्रष्टाचार को बेचारा ही कहूंगा, क्योंकि वह तो बलि का बकरा है, जो न जाने कब से अपनी खैर मनाने की सोच रहा है, मगर जनता के जुबानी हथियार से केवल भ्रष्टाचार ही आहत हो रहा है, न कि भ्रष्टाचारी। बेचारा भ्रष्टाचार !


राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा - 098934-94714

Views: 249

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service