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ग़ज़ल-नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।

१२२ १२२ १२२ १२

नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।
नजर से बचे तो जिगर मर गया।।

अभी पाँव रक्खा ही था इश्क में।
बडी तेज सर पर से पत्थर गया।।

कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।
जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।

नजर थी,बला थी, वो क्या थी मगर।
उसे सोचते सोचते मर गया ।।

जमाने ने सर पर बिठाया उसे।
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।

फना हो गयी है शराफत या रब।
या है ही नहीं तू या फिर मर गया।।

हँसाने की कोशिश करों उसको तुम।
जो आँखों में लेकर समन्दर गया।।

वो इक शे'र डूबा हुआ प्यार में।
बहुत तो नहीं पर असर कर गया।।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by shree suneel on July 12, 2015 at 10:27pm
जमाने ने सर पर बिठाया उसे।
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।.. ख़ूब.. सही बात
अच्छी ग़ज़ल कही आपने आदरणीय. बधाई.. बधाई.
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 12, 2015 at 12:40pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 11, 2015 at 9:12pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया । देर के लिए माफी चाहता हूँ। माता वैष्णो के दर्शन करने गया था। जय माता दी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 12:23pm

आदरणीय राहुल भाई , सभी शे र बहुत लाजवाब हैं , दिली  बधाइयाँ स्वीकार करें ।

जमाने ने सर पर बिठाया उसे।
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।

हँसाने की कोशिश करों उसको तुम।   ----   उला को ऐसे भी कह सकते हैं  --- हँसाने की कोशिश तो की थी उसे
जो आँखों में लेकर समन्दर गया।।
जो आँखों में लेकर समन्दर गया।।  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 8:45pm

बहुत बढ़िया दांगी जी  मुबारक हो .

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2015 at 6:39pm
आदरणीय Pari M Shlok जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया । सादर नमन
Comment by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:16pm
कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।
जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।

जमाने ने सर पर बिठाया उसे।
जरा सी उछल कूद जो कर गया।।

वो इक शे'र डूबा हुआ प्यार में।
बहुत तो नहीं पर असर कर गया।।

कमाल क्या बात है मुक़म्मल ग़ज़ल कहेंगे इसे शायद :)
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2015 at 12:51pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना सफल हुई । सादर धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 12:32pm

आदरणीय राहुल भाईजी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2015 at 10:35am
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत बहुत शुक्रिया

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