For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-मेरा मन मेरे सामने आइना है

मेरा मन मेरे सामने आइना है
मेरा आज खुद से हुआ सामना है
तुम्हारे मिलन में मुझे फैलना है
मगर किसलिये आज मन अनमना है
तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है
खुशी से खुशी को हमें बाँटना है
महब्बत पनपती नहीं जकडनों में
ये रस्मों का जंगल हमें तोड़ना है
तुम्हारी महब्बत भी मंजिल थी लेकिन
अभी जिंदगी है अभी दौड़ना है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on July 22, 2015 at 12:02pm
जी,काफिया में इना,और अना होकर
बहुत बड़ी अनदेखी हो गई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2015 at 6:34pm

आदरणीय सूबे सिह भाई , आप तो अनुभवी गज़ल कार हैं , बातें अच्छी कही है ! आ. श्रीवास्तव जी की बात से सहमत हूँ , काफिया एक बार और देख लीजिये ॥

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 29, 2015 at 3:56pm
बहुत ही सुन्दर भावों से सुसज्जित गजल कही है आदरणीय सुजाीन ज। सभी मिसरों मे काफिया अना ठहरता है अत: पहले मिसरे केफाकिया सुधार ले। बहर भी लिख दिजिए।
Comment by मनोज अहसास on June 28, 2015 at 8:16pm
सतत प्रयासरत रहे
सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2015 at 12:48pm

मतले में ही  काफिया  रदीफ़ सही नहीं लगता

उला  में--------------  इ  ना है

सानी में -------------- अ ना है ------------------ सादर  .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:56am

बह्र न होने से ग़ज़ल का लुत्फ़ नहीं ले पायेंगे आदरणीय  सूबे सिंह सुजान जी 

एक निवेदन कृपया बह्र का उल्लेख कर दे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service