For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ईश्वर तुम हो क्या ?

ईश्वर तुम हो कि नहीं हो

इस विवाद में मन उलझाये बैठी हूँ

‘हाँ’ ‘ना’ के दो पाटों के बीच पिसी

कुछ प्रश्न उठाए बैठी हूँ

कि अगर तुम हो तो इतने

अगम, अगोचर और अकथ्य क्यों हो

विचारों के पार मस्तिष्क से परे

‘पुहुप बास तै पातरे’ क्यों हो

तुम्हें खोजने की विकलता ने

जब प्राप्य ज्ञान खँगाला 

तो द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत ने

मुझको पूरा उलझा डाला

तुम सुनते हो यदि

या कि मुझे तुम सुन पाओ

एक प्रार्थना है तुमसे

तुम खुद को थोड़ा सरल बनाओ

क्यों नहीं सीधे सीधे

तुम्हारा बोध हो जाये

जो भी टूट कर चाहे

वह तुमको पा जाये

तुम सहज प्राप्त हो जाते तो

जाने कितनी ‘निर्भया’ बच जातीं

धर्म का नाम लेकर उठती

अधर्म की आँधिय़ाँ थम जातीं

क्षुधित बालकों के हाथों में

रोटी बन कर आ जाओ

प्यासी  हलकान धरती पर

मेघ बन बरस जाओ

मरते हुए किसानों के खेतों में

नन्हीं बौरें बनकर खिल जाओ 

रहस्य से पगी हुई परतें

अब खुद उघेढ़ बाहर आओ

अनंत ब्रह्मांड में तुम्हें क्यूँ कर खोजें

क्यों न हर आत्मा में सजीव हो जाओ 

                           तनूजा उप्रेती 

  मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tanuja Upreti on May 22, 2015 at 9:59am

धन्यवाद मदन मोहन जी 

Comment by Madan Mohan saxena on May 21, 2015 at 3:31pm

क्षुधित बालकों के हाथों में
रोटी बन कर आ जाओ
प्यासी हलकान धरती पर
मेघ बन बरस जाओ
मरते हुए किसानों के खेतों में
नन्हीं बौरें बनकर खिल जाओ
रहस्य से पगी हुई परतें
अब खुद उघेढ़ बाहर आओ
अनंत ब्रह्मांड में तुम्हें क्यूँ कर खोजें
क्यों न हर आत्मा में सजीव हो जाओ

भावपूर्ण चिंतन वाली कविता
हार्दिक एवम् सादर बधाई

Comment by Tanuja Upreti on May 16, 2015 at 8:02am
धन्यवाद हरि प्रकाश जी,धन्यवाद मनोज जी
Comment by मनोज अहसास on May 15, 2015 at 11:03pm
बहुत भावपूर्ण चिंतन वाली कविता
हार्दिक एवम् सादर बधाई
Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:44pm

तुम सहज प्राप्त हो जाते तो

जाने कितनी ‘निर्भया’ बच जातीं

धर्म का नाम लेकर उठती

अधर्म की आँधिय़ाँ थम जातीं.....बहुत बढ़िया , आध्यात्मिक चिंतन और उसकी कशमकश ! सुन्दर रचना आदरणीया तनूजा उप्रेती जी ! बधाई  

Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 7:25pm
इतनी सुन्दर टिप्पणी के लिए धन्यवाद भैया।
Comment by manmohan mainali on May 15, 2015 at 6:58pm
ईश्वर है,कण-कण मे विद्यमान है|फिर भी चहुँ ऒर ब्याप्त बिसंगतिया और बीद्रुपताये कोमल मन को झकझोरते हुए अस्तित्व व उपलब्धता पर प्रश्न करने को मजबूर कर रही है|काश युवा कबियत्री के सदृश ही संवेदना ब्यापक स्तर पर हो जाती और परिवेश कुछ सुखद हो जाता| सुन्दर विचारो को सहज शब्दों में पिरो कर अंतर्मन मे झांकते-झँझोरते दर्शन की चाशनी मे डुबकी लगाते युवा कवियत्री ने पुनः शानदार प्रस्तुति दी है।
Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 5:23pm

धन्यवाद अमन जी 

Comment by aman kumar on May 15, 2015 at 11:44am

जीवन के पक्ष है , जिनको कोई दुख नही उनके लिए ईश्वर है और जो मुसीबत मे है उनके लिए नही है , अगर स्थिति उलट जाए तो मन के विचार भी बदल जाएंगे , आपकी कशमकश सत्य है ! आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service