‘आज तो लाला ने भी और मोहलत देने से साफ मना कर दिया । समझ नहीं आ रहा अब क्या होगा? बैंक की किश्तें, अगले महीने छोटी की शादी... इस बेमौसमी बरसात ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा ।’ साहूकार की दुकान से बाहर निकलते हुए परेशानी के आलम में वो अपने साथी से बोला
‘सब्र से काम लो भाई ! अब जो भगवान को मंजूर ... अरे ! उधर क्या करने जा रहे हो ... उस तरफ तो बाजार है ?’
‘एक रस्सी लेने...।’
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय |
बहुत सुंदर और मर्म को छू जाती लघुकथा. आपकी लघुकथाओं में शब्दों का कमाल का तालमेल होता है आदरणीय रवि जी. जो पूरी रचना को आँखों के सामने, सजीव सा प्रस्तुत कर देता है. प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
सादर!
फसलें चौपट होने से गाव के खेतिहर किसान/मजदूरों पर आई आपदा के कारण वे आत्म ह्त्या को मजबूर हो रहे है | इसे लेकर रचित सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्री रवि प्रभाकर जी
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