For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घाट पर ठहराव कहाँ (लघुकथा)

धरा में कम्पन होते हुए एक सैलाब सा उमड़ पड़ा। सामने से आती उत्ताल नदी का वेग फट पड़ा था जमीन पर .....
धरा का हृदय विभक्त हो उठा दो किनारों में । धरा का खुद के अंश से अलगाव सहना ...!!
धरा का रूदन अब कौन सुने ..?
उन्मुक्त नदी अपनी ताव में जमीन की छाती चीरती हुई बढ़ चली थी ।
उसे क्या परवाह थी कि किसने चोट खाई .... !
बेबस थे दोनों किनारे ....बरसों,जो रहे थे एक दुसरे में समाहित ... वो आज .... !!
अब जीवन भर देखते ही रहना है एक दुसरे को.....यूँ ही ।
किनारे नदी की मार से घिस-घिस कर हनन होते रहे .... पीड़ा सहते रहे ।
घाट पर ठहर जाने के लिए तरसती रही .......पर हाय री क़िस्मत ...!!!
समय का चक्र....... ठहराव कहाँ देता है ....?


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 11:04pm
बिलकुल समझ रही हूँ सब बातों को आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी ....हम बिलकुल सतर्क रहेंगे और अनुमोदन करेंगे आप सब सुधी जनों की बात को । सादर नमन ।
Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 10:53pm

जी सर , आपके  एक -एक शब्द को ध्यान से  पढ़ता हूँ , बस इधर  कुछ  समयाभाव रहा , समय  नहीं  दे  पा  रहा  हूँ  , पर  आप सभी का  स्नेह  बना  रहे  ,इसी  आशा  के  साथ  ! सादर   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 10:40pm

मेरे कहे को अनुमोदित करने के लिए सादर आभार आदरणीय हरि प्रकाश जी.. 

वस्तुतः प्रशंसा दायित्वबोध की जनक होनी चाहिये.

Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 10:17pm

आदरणीया कांता जी, आपको इस रचना पर बधाई  और  आदरणीय सौरभ  सर  ने  सबके  लिए  बहुत  सही  बात  कही  है  "आदरणीया,  इस अभिनव मंच पर अधिक वाह-वाह’ मिलने लगे तो नये रचनाकारों को सचेत हो जाना चाहिये " . वाकई   ! ये शब्द  मार्गदर्शक  हैं   !  सादर    

Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:32pm
बेहद गुढ़ और सुक्ष्म स्वरूप में गहन मार्गदर्शन देने हेतु सदैव आपका रिणी रहूँगी आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी .... आपके सुझावों को मद्देनजर रखते हुए सदा पठन पर ही जोर देने की कोशिश करूँगी । टंकण त्रुटि और अक्षर दोष के निवारण हेतु अधिक सतर्कता रखूँगी । आपकी बात अक्षरसः कायम रखने की कोशिश रहेगी । इस साहित्यिक मंच की गरिमा इसी मार्गदर्शन से कायम होती है । सादर नमन आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 5:43pm

भावदशा को शाब्दिक होने के क्रम में काव्यतत्त्व का छिड़काव हुआ है. अच्छा लगा.

नदी, एक अहंमन्य इकाई, जिस धमक के साथ आगे बढ़ती बतायी गयी है, उस धमक का आघात अन्योन्याश्रय लगती अन्यान्य इकाइयाँ गहराई से महसूस करती हैं. वज़ूद बदल जाता है. वस्तुतः बिम्बात्मक प्रयोग अच्छा लगा.

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीया. विश्वास है, आपकी अन्य प्रस्तुतियों से यह मंच लाभान्वित होता रहेगा.

अलबत्ता, टंकण-त्रुटियों  या अक्षरी दोष से बचने का प्रयास करें. मैं कोई सुझाव तो नहीं दे रहा, किन्तु, निवेदन अवश्य है, कि आप पढ़िये. इस मंच पर अब आवश्यकतानुसार सामग्री उपलब्ध हो गयी है. आपका पाठक, आदरणीया, जिस दिन जागेगा, आप कहने की जगह सुनने लगेंगी. आपकी लेखिनी उर्वर है. इसे संयत कीजिये.

आदरणीया,  इस अभिनव मंच पर अधिक वाह-वाह’ मिलने लगे तो नये रचनाकारों को सचेत हो जाना चाहिये.

मेरी बातों को समझियेगा.

सादर शुभेच्छाएँ.

Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 11:18am
आपके शब्द सदा मेरा मनोबल बढा जाते है आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी ..... बहुत बहुत आभार आपको
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 11:13am

सुंदर प्रस्तुति,आदरणीया कांता जी. न कोई बड़ा ,न कोई छोटा ,यह एक ऐसा मंच है जहाँ सिर्फ सोच रखने वाला भी सीख जाता है तो फिर आप की कलम में तो अति उर्वरा शक्ति है. बस! आप सक्रीय रहकर लिखते रहिएगा..

सादर!

Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 11:13am
आभार आपको तहे दिल से आदरणीय श्री सुनील जी
Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 11:12am
आभार मेरा उत्साह बढाने के लिए आदरणीय मोहन सेठी 'इंतजार ' जी आपको तहे दिल से ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service