धरा में कम्पन होते हुए एक सैलाब सा उमड़ पड़ा। सामने से आती उत्ताल नदी का वेग फट पड़ा था जमीन पर .....
धरा का हृदय विभक्त हो उठा दो किनारों में । धरा का खुद के अंश से अलगाव सहना ...!!
धरा का रूदन अब कौन सुने ..?
उन्मुक्त नदी अपनी ताव में जमीन की छाती चीरती हुई बढ़ चली थी ।
उसे क्या परवाह थी कि किसने चोट खाई .... !
बेबस थे दोनों किनारे ....बरसों,जो रहे थे एक दुसरे में समाहित ... वो आज .... !!
अब जीवन भर देखते ही रहना है एक दुसरे को.....यूँ ही ।
किनारे नदी की मार से घिस-घिस कर हनन होते रहे .... पीड़ा सहते रहे ।
घाट पर ठहर जाने के लिए तरसती रही .......पर हाय री क़िस्मत ...!!!
समय का चक्र....... ठहराव कहाँ देता है ....?
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
जी सर , आपके एक -एक शब्द को ध्यान से पढ़ता हूँ , बस इधर कुछ समयाभाव रहा , समय नहीं दे पा रहा हूँ , पर आप सभी का स्नेह बना रहे ,इसी आशा के साथ ! सादर
मेरे कहे को अनुमोदित करने के लिए सादर आभार आदरणीय हरि प्रकाश जी..
वस्तुतः प्रशंसा दायित्वबोध की जनक होनी चाहिये.
आदरणीया कांता जी, आपको इस रचना पर बधाई और आदरणीय सौरभ सर ने सबके लिए बहुत सही बात कही है "आदरणीया, इस अभिनव मंच पर अधिक वाह-वाह’ मिलने लगे तो नये रचनाकारों को सचेत हो जाना चाहिये " . वाकई ! ये शब्द मार्गदर्शक हैं ! सादर
भावदशा को शाब्दिक होने के क्रम में काव्यतत्त्व का छिड़काव हुआ है. अच्छा लगा.
नदी, एक अहंमन्य इकाई, जिस धमक के साथ आगे बढ़ती बतायी गयी है, उस धमक का आघात अन्योन्याश्रय लगती अन्यान्य इकाइयाँ गहराई से महसूस करती हैं. वज़ूद बदल जाता है. वस्तुतः बिम्बात्मक प्रयोग अच्छा लगा.
हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीया. विश्वास है, आपकी अन्य प्रस्तुतियों से यह मंच लाभान्वित होता रहेगा.
अलबत्ता, टंकण-त्रुटियों या अक्षरी दोष से बचने का प्रयास करें. मैं कोई सुझाव तो नहीं दे रहा, किन्तु, निवेदन अवश्य है, कि आप पढ़िये. इस मंच पर अब आवश्यकतानुसार सामग्री उपलब्ध हो गयी है. आपका पाठक, आदरणीया, जिस दिन जागेगा, आप कहने की जगह सुनने लगेंगी. आपकी लेखिनी उर्वर है. इसे संयत कीजिये.
आदरणीया, इस अभिनव मंच पर अधिक वाह-वाह’ मिलने लगे तो नये रचनाकारों को सचेत हो जाना चाहिये.
मेरी बातों को समझियेगा.
सादर शुभेच्छाएँ.
सुंदर प्रस्तुति,आदरणीया कांता जी. न कोई बड़ा ,न कोई छोटा ,यह एक ऐसा मंच है जहाँ सिर्फ सोच रखने वाला भी सीख जाता है तो फिर आप की कलम में तो अति उर्वरा शक्ति है. बस! आप सक्रीय रहकर लिखते रहिएगा..
सादर!
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