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याद आते हैं
अक्सर
पुराने जमाने ,
बैलों की गाड़ी
वो भूजे के दाने ,
दादी माँ की कहानी
उन्हीं की जुबानी,
भूले से भी न भूले  
वो पुरवट का पानी |
अक्सर ही बागों में
घंटों टहलना
पके आमों पे
मुन्नी का मचलना
गुलेलों की बाज़ी
गोलियों का वो खेला
सुबह शाम जमघट पे
लगे मानो मेला
वो मुर्गे की बांग पे
भैया का उठना
रट्टा लगाके
दो दूना पढ़ना
कपडे के झूले पे
करेजऊ का झुलना
छोटी-छोटी बातों पे
बुधिया का फुलना 
लगती है सुहानी
वो सपनों सी दुनिया
यादों में बसी
जादू की पुडिया |
कहां खो गये वो
जो दिन थे सुहाने
यादों में सताते
फिर फिर के आते
पर टिकते न लेकिन
कहीं खो वो जाते
वो सुंदर नजारे
वो पल पल की खुशियाँ |

( मौलिक अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Chhaya Shukla on May 2, 2015 at 10:25pm

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
अतिशय आभार कृपया स्नेह बनाये रखें सादर नमन !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:23pm

अतीत की मोहक याद से सजी  सुन्दर रचना .

Comment by Chhaya Shukla on April 29, 2015 at 2:52pm

मनोबल बढाती प्रतिक्रिया का हृदय से स्वागत है आ. ganesh jee "bagi" जी सादर नमन !

Comment by Chhaya Shukla on April 29, 2015 at 2:51pm

आ. मिथिलेश वामनकर जी आपकी उपस्थिति से रचना धर्मिता को बल मिला सादर नमन !

Comment by Chhaya Shukla on April 29, 2015 at 2:50pm

बहुत - बहुत शुक्रिया shyam narain verma आपकी आपकी सराहना से सृजन को बल मिला |
सादर नमन !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 10:57pm

बचपन की सैर करा दी आपकी कविता आदरणीया छाया शुक्ला जी. बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 9:32pm

यादों के सुहावने सफ़र के लिए हार्दिक आभार आदरणीया छाया जी 

Comment by Shyam Narain Verma on April 28, 2015 at 10:44am
बहुत  ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई 

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