तरही ग़ज़ल -
2122 2122 2122 212
तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये
दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये
अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है वबाल
बचपना में ही सभी बच्चे सयाने हो गये
जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे
यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये
अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ
नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये
इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये
आप ये मत बोलिये जाने अजाने हो गये
कुछ तो छींटे मारिये इस सम्त भी खुश रंग के
हम कभी तो कह सकें अब दिन सुहाने हो गये
आपकी नज़रे करम का क्या असर है, क्या कहूँ
दर्द के लम्हें खुशी के कारखाने हो गये
आपने क्यों छू दिया मिसरों को मेरे प्यार से
सरकशी सब खो गई , प्यारे तराने हो गये
आप क्या आये कि सारी बज़्म रोशन हो गई
'' चाँद क्या उभरा कि सब मंज़र सुहाने हो गये ''
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आ० अनुज
बहुत उम्दा गजल है . मुझे यह बताने की कृपा करें कि एक तरही और दो तरही गजल का क्या मतलब है . सादर .
आदरणीय नीलेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
बहुत खूब आ. गिरिराज जी ...
बधाई
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