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हादसा : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

“ए बच्ची सुन,यहाँ जेल में किससे मिलने आई है !”

“जी सरकार ,अपने पिताजी से !”

“ पर तू तो भले घर की लगती है, और तेरा बाप जेल में, क्या हुआ था ?”

“साहब एक हादसा हो गया था !”

“कैसा हादसा ,कब ?

“ जी ,सब कहतें हैं मेरे पैदा होने के समय !”

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:05am

अजीब हादसा ...लघुकथा का निचोड़ ! सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:37pm

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2015 at 4:54pm

इस सशक्त एवं श्लाघनीय प्रयास के लिए हृदयतल से बधाइयाँ, आदरणीय हरि प्रकाशजी.
लघुकथा समस्त विशेषताओं के साथ सामने आयी है.
शुभ-शुभ

Comment by shree suneel on April 1, 2015 at 4:00pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी,अच्छी लघु-कथा के लिए बधाईयां. अंतिम पंक्ति ने कमाल का प्रभाव पैदा किया है.
फिर से हार्दिक बधाईयां.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 1, 2015 at 8:49am

बहुत खूब. चंद पंक्तियों में कमाल कर दिया आपने आदरनिय हरिप्रकाश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 31, 2015 at 9:23pm
सुन्दर लघु-कथा की प्रस्तुति, बधाई , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 7:32pm

आ.हरि प्रकाश दुबेजी. अति लघुकथा. अंत रहस्यमई ?

हार्दिक बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on March 31, 2015 at 4:47pm
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:32pm

सुन्दर लघुकथा पर हार्दिक बधाईयां आदरणीय!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 31, 2015 at 3:22pm

"मेरे पैदा होने के समय "  बस यही वो शब्द है जो पाठक को बार बार सोचने के लिए विवश कर देते है ....        आदरणीय हरी प्रकाश        दुबेजी .बेहतरीन कथा, बधाई स्वीकार करे.

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