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इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा

२२१२ २२११ २२१ १२२

अब हाले दिल ये उनको सुनाना ही पड़ेगा

लगता है अपने ओंठ हिलाना ही पड़ेगा

छत पे खड़े हैं आज वो ऊंचे मकान की 

इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा 

लौटे हैं कितने रिंद उन्हें मान के पत्थर 

जल्वा- ग़ज़ल का उनको दिखाना ही पड़ेगा 

छुप छुप के देखें आह भरें होगा न हमसे  

नजरों के तीखे तीर चलाना ही पड़ेगा 

ग़ज़लों पे रखिये आप यकी आज भी अपनी 

जलता हुआ दिल ले उन्हें आना ही पड़ेगा 

जिस दौर में ओंठो पे यकी होता नहीं है 

उसमे जिगर भी चीर दिखाना ही पड़ेगा 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 5:09pm

आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

जिस दौर में ओंठो पे यकी होता नहीं है 

उसमे जिगर भी चीर दिखाना ही पड़ेगा  --- बहुत सुन्दर !! बधाई आदरणीय ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:31pm

आदरणीय विजय सर ...आप के उत्साहित करने वाले शब्दों से मुझे रचना धर्मिता की नूतन उर्जा मिलती है ..आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे इस कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:29pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी ..आपका स्नेह बस यूं ही सदैव मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:28pm

आदरणीय मिथिलेश जी ...उत्साहवर्धन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:26pm

आदरणीय महर्षि जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:26pm

आदरणीय गोपाल सर ..इस गलती पर मेरा ध्यान भी गया था लेकिन ठीक करना भूल गया ..आपके मार्गदर्शन और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद  सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:21pm

आदरणीय श्याम नारायण जी ..रचना आपको पसंद आयी इससे मुझे नूतन उर्जा मिलती है हादिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:20pm

आदरणीय कृष्णा जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 11:33pm
आदरणीय डॉ O आशुतोष मिश्रा जी , मन भावक प्रस्तुति, बधाई , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 9:05pm

आदरणीय डॉक्टर आशुतोष मिश्रा जी सुन्दर ग़ज़ल 

छत पे खड़े हैं आज वो ऊंचे मकान की 

इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा....सुन्दर , बधाई आपको !

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