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मेरी पहली कविता जो मैने १९९६ मे लिखी थी  .....



भूली मुहब्बत की दास्तान हो तुम ,
जहाँ सूरज चाँद सितारे न हो ,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मुहब्बत की दास्तान हो तुम ,


सुना है बूंद बूंद से तालाब भरता है ,
मै भी दो चार बूंद अश्को से ,
तालाब भर रहा हू ,
क्या जल्द ही ऐसा होगा ,
ये तालाब लबालब भरेगा ,
जिसे देख तेरा भी ,पत्थर दिल पिघलेगा ,
पर शायद .................
क्योकि जिसका कोई भविष्य नहीं ,
वो हसीन अरमान हो तुम ,
जहाँ सूरज चाँद सितारे न हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,


कब ख़त्म होगा यह अँधेरा ,
और आयेगा एक सुनहला सबेरा ,
ताकि मैं भी ख्वाब से जागकर ,
हकीक़त की दुनिया मे कदम रखू ,
शतरंज की तरह उलझे ,
इस दुनिया को समझ सकू ,
पर "बागी" की आत्मा धिक्कारती है ,
कि तुम नहीं समझोगे ........
क्योकि अनाड़ी,नासमझ, पागल इंसान हो तुम ,
जहाँ सूरज चाँद सितारे न हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम .

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:25pm
बागी भैया बड़ा दर्द छुपा है इस कविता में...पुरानी कविता है ...जरूर कोई पुरानी बात है ...यूँ ही नही बनता है कोई शायर और कवि|

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