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प्यार की भी कोई जात होती है ?

लग गयी हमारे-तुम्हारे प्यार को,

कुछ हवा शायद जो नज़र होती है !

 

और नज़र उतारती थी जो अम्मा,

अब कौन जानता किधर सोती है !

 

मुस्कराते थे पनघट, जो हम पर ,

उनकी हँसी अब उन्हीं पर रोती है !

 

लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,

दीवार  हर बात- बात पर रोती है !

 

मिल नहीं पाता  मैं अब तुमसे ,

तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है !

 

दिन नहीं होता  धरती पर अब ,

अब धरती पर  सिर्फ रात होती है!

 

मरू सी लगती  मन की धरा ,

धरा पर अश्रुओं की बरसात होती है!

 

किस बात पर  नाराज हैं सब,

प्यार की भी कोई जात होती है ?

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

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Comment by Shishir Dwivedi on January 12, 2015 at 8:18pm

और नज़र उतारती थी जो अम्मा,

अब कौन जानता किधर सोती है !  

-- वाह क्या बात है 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:35pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:30pm

प्रिय सोमेश भाई आपका  उत्साहवर्धन और सराहना हेतु दिल से आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:23pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपका  अतिशय हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:21pm

आदरणीय खुरशीद  जी ..रचना पर  सार्थक प्रतिक्रिया  के लिए  आपका  हार्दिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 10:56am

आदरणीय हरि प्रकाश  भाई , मुहब्बत की मज़्बूरियों का अच्छा बयान किया है , हार्दिक बधाई रचना के लिये ।

Comment by somesh kumar on January 12, 2015 at 9:50am

सिसकते प्यार की सदा ज़माना सुनता नहीं 

अपनी रीतियों अनीतियों के आगे गुनता नहीं 
मोहब्बत की ये विवशता आप ने बहुत खूबसूरती से व्यक्त की |सुंदर !हृदय-स्पर्शी रचना |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:45am

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ...

लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,

दीवार  हर बात- बात पर रोती है !.......... वाह 

 

मिल नहीं पाता  मैं अब तुमसे ,

तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है ! ..... बेहतरीन 

Comment by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:24pm

लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,

दीवार  हर बात- बात पर रोती है !

 

मिल नहीं पाता  मैं अब तुमसे ,

तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है !

आदरणीय हरिप्रकाश जी ,सुन्दर रचना है ,सादर अभिनन्दन |

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