For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस प्यार ही जिंदगी होवे (गीत)

तू प्यार की राहों में चलना

बस प्यार ही जिंदगी होवे

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो सच्चा होवे,-2

तू देख के लगे फकीरा

पर दिल का फ़कीर न होवे,

तू यार तो सच्चा न हो

पर प्यार तो सच्चा होवे,....2

सपनो की इस जिंदगी में

रूप सुहाने लगते हैं,

प्यार बिना कहीं चैन न आवे

ना ही दिन ये कटते हैं,

इन सुहानी रातों में

सजना साकी लगतें हैं,

रात भर कभी  नीद न आवे

कभी दिन में सपने सजते हैं..2

तू भूल जाए जग सारा

पर इश्क का अश्क न खोवे,

तू देख के लगे फकीरा

पर दिल का फ़कीर न होवे,..2

तू प्यार की राहों में चलना

बस प्यार ही जिंदगी होवे !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 12:28am

आदरणीय सर , विधा का महत्व बहुत है , यही तो इस मंच की श्रेष्ठता है , और उससे भी बड़ी बात की यहाँ पर आप जैसे गुनी जन बात सुनते भी है ,और समझाते भी है ,..ये शेर तो बस भाव को समझाने के लिए था ,बाकी गीत ही टैग्स मैं आता है ..बाकी क्षमाँपार्थी हूँ अगर  कुछ अज्ञानता वस् लिख दिया हो तो ! सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 31, 2014 at 12:17am

//यह स्वत: सफूर्त भावनाओं का सहज उच्छलन है ,इसमें भावना की प्रधानता एवम् मूल में गान, अथवा गेयता की धारणा जुडी हुई है ,यहाँ गीत ,संगीत और काव्य में विभेद की मात्रा नगण्य हो जाती है ...गीत का कोमल मन भावना के जिस रमणीय आकाश में विचरण करता है वहाँ जटिल ,क्रत्रिम विधानों की जरूरत नहीं रह जाती है .....”इश्क को दिल में जगह दे ...ईल्म से शायरी नहीं आती ! अपनी बात समझा पाया हूँ शायद..... सादर !//

ऐसा है क्या ? फिर तो हम लोग इस मंच पर विधा-विधा की रट लगा कर बकवास बाजी से अधिक कुछ कर ही नहीं रहे, यदि इल्म से शायरी नहीं आती तो बगैर इल्म शायरी हो जाती है ?
क्या कहूँ, क्या ना कहूँ, अभी कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ, एक बात जानना चाहता हूँ, इस प्रस्तुति को आप "गीत" से ही क्यों वर्गीकृत किये ? 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:19pm

अंगरेजी- साहित्य में “लिरिक” (गीति काव्य ) का उद्गम यूनान (ग्रीक) की गीत परंपरा से माना जाता है ,जिसके दो विभेद  प्रचलित थे ! प्रथम विभेद के अंतर्गत उन गीतों की गणना ,जिन्हें ‘मेलिक’ अथवा ‘लिरिक’ कहा जाता था और जिसका गान व्यक्ति –विशेस के द्वारा ‘लायर’ नाम के वाद्य –यन्त्र पर होता था ! द्वितीय विभेद के अंतर्गत समूह गान की परिपाटी थी , जिसे एकाधिक व्यक्ति ताल वाद्य और संभवत: न्रत्य के साथ भी प्रस्तुत करते थे ! अंगरेजीकी लिरिक  कविता का सम्बन्ध यूनानी गीत के प्रथम विभेद से माना जाता है ! अपने यूनानी उद्गम से सम्बन्ध –निर्वाह करते हुए ,लिरिक (गीति –काव्य ) आज भी उसकी दो विशेषताओं को समाहित किये हुए ! एक तो यह कि उसमें एकांतिक भाव-संवेग की अभिवयक्ति होती है –व्यक्ति विशेष की विशिष्ट भावानुभूति का उच्चछलंन होता है !दुसरे यह कि उसकी संरचना गीतात्मक होती है ! कालांतर में,,रचनागत शब्दों मै अंतर्निहित आभ्यंतर संगीत अथवा रागतत्व की खोज हुई ! अस्तु: गीतिकाव्य की कलात्मक सर्जना का युग आरम्भ हुआ ! अंग्रेजी –कविता में इसका श्रेय शैली ,कीट्स, बाईरन ...हिंदी में प्रसाद,निराला ,पंत और “बच्चन” जैसे सुकवियों को जाता है !.......सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 4:40am

आदरणीय सौरभ सर निवेदन है कि आप  लिरिक-पोएट्री के विषय में बताएं .... ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 4:37am

पश्चिम का लिरिक-पोएट्री यानी गीतकाव्य या गेय-काव्य, भारतीय गीतकाव्य से अलग है क्या ? मेरे हिसाब से तो हर कवि/ रचनाकार चाहता है कि उसकी रचना संगीत की सीमा को स्पर्श कर जाए... चाहे वो कविता हो, गीत हो, ग़ज़ल हो नज्म हो या कोई छंदमुक्त या छंदमयी रचना. या कहे कि रचना, शब्द-धर्मी  हो, न हो पर संगीत-धर्मी होना, मन को अधिक भाता है. //भावना की प्रधानता एवम् मूल में गान// यह शायद सूरदास, मीरा आदि के भजनों या पदों में देखने को मिलता है, जिसमे पदों की गेयता को ही सबसे अधिक महत्व दिया गया है. उन कृष्ण लीला या अन्य पदों में देखें तो आपने सही कहा -//गीत ,संगीत और काव्य में विभेद  की मात्रा नगण्य हो जाती है ...गीत का कोमल मन भावना के जिस रमणीय आकाश में विचरण करता है वहाँ जटिल ,क्रत्रिम विधानों की जरूरत नहीं रह जाती है// लेकिन कितनी अजीब बात है कि जिस गेयता को  जटिल ,क्रत्रिम विधानों की जरूरत नहीं होती वो गेय लय भी सात सुरों के जटिल विधान में बंधी होती है. हम जो धुन या लय गुनगुनाते और गाते है उसे सरगम विधान में लिखे तो मात्र सात सुर वो गज़ब की जटिलता पैदा कर देते है कि दिन में तारे दिखाई देने लगते है. सुरीला गाना माने सुर विधान का पालन और बेसुरा गाना माने सुर विधान को नजरंदाज करना. ये तो ईश्वर की माया है कि मानव को सुर की समझ उसके अचेतन/ अवचेतन मन में भी उपलब्ध करा दी, हम कोई भी गीत, बिना उसका संगीत विधान जाने भी कितनी सहजता से गा लेते है. पूरी प्रकृति ही संगीतमय है, आकाश-क्षेत्र वायु भूमि जल-प्रवाह अग्नि जीव जंतु पौधे सभी में सुरीला भावपूर्ण विधान है. खैर ... आपने भी खूब कहा- इश्क को दिल में जगह दे गालिब/इल्म से शायरी नहीं आती"

पश्चिम की "लिरिक पोएट्री" तो कभी पढ़ नहीं पाया था, आपके बताने के बाद आज पहली बार कुछ "लिरिक पोएट्री" पढ़ी. वैसे  तो  बहुत कम समझ आई लेकिन विलियम शेक्सपियर की ये "लिरिक पोएट्री" पढने में कुछ कुछ समझ भी आई और अच्छी भी लगी -

Shall I compare thee to a summer's day?

                           Thou art more lovely and more temperate.

Rough winds do shake the darling buds of May,

                        And summer's lease hath all too short a date.

Sometime too hot the eye of heaven shines,

                             And often is his gold complexion dimmed,

And every fair from fair sometime declines,

                 By chance, or nature's changing course untrimmed.

एक नई विधा (मेरे लिए नई) से परिचित कराने के लिए बहुत बहुत आभार , हार्दिक धन्यवाद ....सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 2:11am

आदरणीय मिथिलेश जी ,दरअसल   इस तरह के सर्जन पर पश्चिम के "लिरिक पोएट्री" का प्रभाव होता है ! सादर ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 1:22am

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी क्षमा करें ...मैं आदरणीय बागी सर के इस कथन //मैं बहुत गहराई से इस विधा को तो नहीं जानता// के मद्दे नज़र मैं इसे कोई विधा अथवा  लोक विधा समझ के पूछ रहा था. सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 1:10am

यह स्वत: सफूर्त भावनाओं का सहज उच्छलन है ,इसमें भावना की प्रधानता एवम् मूल में गान, अथवा  गेयता की धारणा जुडी हुई है ,यहाँ गीत ,संगीत और काव्य में विभेद  की मात्रा नगण्य हो जाती है ...गीत का कोमल मन भावना के जिस रमणीय आकाश में विचरण करता है वहाँ जटिल ,क्रत्रिम विधानों की जरूरत नहीं रह जाती है .....”इश्क को दिल में जगह दे ...ईल्म से शायरी नहीं आती ! अपनी बात समझा पाया हूँ शायद..... सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 11:00pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी, भाव संगीत / भाव गीत इस विधा को मैं समझ नहीं पा रहा हूँ ....  सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 9:06pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, रचना पर उत्साहवर्धन हेतु ,  आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
19 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service