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नवगीत : ये है नया नजरिया.

फटी भींट में चौखट ठोकी,

खोली नयी किवरिया.

चश्मा जूना फ्रेम नया है,

ये है नया नजरिया.

 

गंगा में स्नान सबेरे,

दान पूण्य कर देंगे.

रात क्लब में डिस्को धुन पर,

अधनंगे थिरकेंगे.

देशी पी अंग्रेजी बोलीं,

मैडम बनीं गुजरिया.

 

अपने नीड़ों से गायब हैं,

फड़की सोन चिरैया.

ताल विदेशी में नाचेंगी,

रजनी और रुकैया.

घूंघट गया ओढनी गायब,

उड़ती जाए चुनरिया.

 

चूल्हा चक्की कौन करे अब,

डिब्बे में भोजन है.

बहू कमाती नकद रोकडा.

पैसे का पूजन है.

गाँव हमारे गायब होते,

लन्दन बनी नगरिया.

**हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by harivallabh sharma on December 25, 2014 at 12:19am

आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी आपने रचना को मान्यता देकर उत्साहित किया आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार..सादर.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 24, 2014 at 8:48pm

बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना! आदरणीय harivallabh sharma जी!

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 11:00pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपका हार्दिक आभार रचना पर सार्थक स्नेह दिया...सादर 

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 10:59pm

आदरणीय vijay nikore जी रचना को स्नेह देकर हौसला बढ़ाने का हार्दिक आभार...स्नेह बनाये रखें , सादर.

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 10:56pm

आदरणीय Sushil Sarna जी आपकी हौसला अफजाई निश्चित ही रचना कर्म को बल देती रहेगी ..हार्दिक आभार ,कृपया स्नेह बनाये रखें...सादर 

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 10:53pm

आदरणीय khursheed khairadi साहब अत्यंत हर्षित करते आपके शब्द अवश्य मार्गदर्शन कर रहे हैं...आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार...सादर.

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 10:51pm

आदरणीय somesh kumar जी आपकी प्रात्साहित करती स्नेहिल टीप का हार्दिक स्वागत...कृपया स्नेह बनाये रखें, सादर.

Comment by harivallabh sharma on December 23, 2014 at 10:49pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी आपने इतनी स्नेहिल मीमांसा कर रचना को सार्थक किया है..आपकी अनुसंशा पाकर कलम धन्य हुयी है...नवगीत में पदार्पण के प्राथमिक चरणों में आपका प्रोत्साहन अवश्य दिग्दर्शन करेगा ...हार्दिक आभार...सादर.

Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 6:10pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी बहुत  ही शानदार रचना ...आंचलिक शब्दों  का खूबसूरत प्रयोग 

देशी पी अंग्रेजी बोलीं,

मैडम बनीं गुजरिया....बधाई आपको 

Comment by vijay nikore on December 23, 2014 at 4:02pm

एक बहुत ही सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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