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* गाँव आ गया*

उबड़ खाबड़ सड़कें,गाड़ी
हिचकोले खाती।
सड़क किनारे लगीं सब्जियाँ
मन में बस जातीं
शुद्ध हवा साँस खिल आए।
गाँव आ गया।

पानी लेने ललनाएँ भी
दूर दूर आती।
सिर काँधें पर धरी गगरियाँ
छलक छलक जाती।
गागर कटि संग लचकी जाये।
गाँव आ गया।

लिपे पुते हैं सजे धजे से
आँगन दालानें।
भोली भाली सरल सहज सी
निश्छल मुस्कानें।
आँगन को तुलसी महकाये।
गाँव आ गया।

आम नीम जामुन कनेर के
पग पग पेड़ लगे।
तरस गईं आँखें भी देखने
झुरमुट पेड़ घने।
हरियाली तन मन पर छाये।
गाँव आ गया।....सीमा हरी शर्मा 08.10.2014

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by seemahari sharma on October 12, 2014 at 11:57pm
बहुत बहुत धन्यवाद आपका rajesh kumari जी आपने रचना को सराहा लिखना सार्थक रहा।
Comment by seemahari sharma on October 12, 2014 at 11:54pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव बहुत बहुत आभार आपका आपने सही कहा आदरणीय गाँव का ओर भी चित्रन किया जा सकता था विस्तार करने का प्रयास करुँगी सादर ।

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Comment by rajesh kumari on October 12, 2014 at 11:14am

बहुत सुन्दर शब्दों में गाँव के चित्र उकेरती आपकी रचना हेतु हार्दिक बधाई प्रिय सीमा जी .

Comment by seemahari sharma on October 10, 2014 at 11:14pm
आभार आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपने रचना को सराहा।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 5:08pm

सीमा जी

गाँव की एक विहंगम झांकी दिखाकर आप ओझल हो गयी i कुछ और दृश्य देती तो बड़ा सुकून मिलता i आपको बधाई i

Comment by Shyam Narain Verma on October 9, 2014 at 10:18am

" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "

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