For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न होना दूर नज़रों से कसम हमको खिलाती थी
न दे जब साथ लब उसके इशारो से बुलाती थी

किताबों में छुपाती थी दिया हमने जो दिल उसको
बचा नज़रे सभी की वो उसे दिल से लगाती थी

चुरा नज़रे सभी की हम मिले जब बाग में इक दिन
लगा कर वो गले हमको बढ़ी धड़कन सुनाती थी

कभी आँखों मे डाले अाँख कर देता शरारत तो
चुरा कर वो नज़र हमसे जरा सा मुस्‍कुराती थी

न भूलेगे कभी हम तो बिताये साथ पल उसके
छुपा कर चाँद सा मुखड़ा हमें हरदम सताती थी

मौलिक एवं अप्रकाशित

अखंड गहमरी

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by शकील समर on September 10, 2014 at 3:45am

जी हां, इस बदलाव से ये गजल काफिए के स्तर पर दुरुस्त हो जाएगी।

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:26am

अादरणीय गुरूवर गिरिराज भंडारी जी आपको चरण स्‍पर्श आप सर्मथन नहीं आदेश करें।

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:25am

आदरणीय शकील समर जी आप जैसे मार्गदर्शक की वजह से आज हम सीख पाये है और सीख पा रहे है मार्गदर्शन के लिये आपको नमन जहॉं तक बदलवा की बात है मैने ये बदलाव किया है क्‍या इससे समस्‍या हल हो जायेगी

न होना दूर नज़रों से कसम हमको खिलाती थी
सजा दो मॉंग अब मेरी इशारो से बताती थी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2014 at 8:39pm

आदरणीय अखंड भाई , ग़ज़ल की बातें बहुत खूब सूरत लगीं , काफिये में गड़बड़ी है , आदरणीय शकील भाई के कहे का मैं भी समर्थन करता हूँ , सुदार लीजिये गा | प्रयास के लिए बधाइयाँ |

Comment by शकील समर on September 9, 2014 at 4:27pm

आदरणीय अखंड गमहरी साहब,
आपकी ये गजल काफिए के स्तर पर खारिज हो रही है। मतले में आपने वकाफी 'खिलाती' और 'बुलाती' लिया है। मेरी जानकारी के अनुसार इसमें इकवा दोष है। अगर क्षण भर के लिए इकवा दोष को नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो शेष अशआर के काफिये भी खारिज हो रहे हैं। क्योंकि किसी में भी 'लाती' को नहीं निभाया गया है। सादर।

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 11:06am
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अखंड भाई।। बहुत बहुत बधाई आपको।। सादर
Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 9:33pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय harivallabh sharma जी

Comment by Akhand Gahmari on September 7, 2014 at 9:33pm

हम आपके मार्गदर्शन एवं उत्‍साहवर्धन्‍ा के सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' जी

Comment by harivallabh sharma on September 7, 2014 at 9:29pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल..
किताबों में छुपाती थी दिया हमने जो दिल उसको 
बचा नज़रे सभी की वो उसे दिल से लगाती थी..सभी अशआर लाजबाब ..बधाई आपको.

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:39pm

बहुत सुंदर शृंगारित भाव। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service