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अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल

कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल

आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल

ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल

गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल

.
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सूबे सिंह सुजान on September 6, 2014 at 9:47pm

 Sulabh Agnihotri ,  भाई साहब आपका आभार , हां आपने मूर्ख को मूरख करने की सलाह देकर , मेरी गल्तियों को याद दिलाया , बहुत शुक्रिया 

Comment by सूबे सिंह सुजान on September 6, 2014 at 9:43pm

laxman dhami ,  आभार भाई साहब...... 

Comment by सूबे सिंह सुजान on September 6, 2014 at 9:43pm

 गिरिराज भंडारी,   आपका आभार   

Comment by Sulabh Agnihotri on September 6, 2014 at 5:34pm

इस बहुत अच्छी गजल के लिए बधाई कुबूल करें।
गजल में मिट्टी की सांधी महक है - जो कि आम तौर पर गजलों में नहीं होती साथ ही जबरिया उर्दू का छौंक नहीं है इसलिए आम हिन्दी पाठक को सहज समझ में आनी वाली है।
कृपया चैथे शेर में मूर्ख की जगह मूरख लिखिये।
बाकी अल और यल की बात तो हो ही चुकी है।
पुनः बधाई !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2014 at 11:59am
आदरणीय भाई सुबे सिंह जी, गजल अच्छी हुई है हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2014 at 10:42am

आदरणीय सूबे सिंह भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , मौसम के अनुकूल , आपको दिली बधाइयाँ

Comment by सूबे सिंह सुजान on September 4, 2014 at 9:34pm

 Dr Ashutosh Mishra,  आदरणीय, आपका बहुत बहुत धन्यवाद.....

आपकी बात सही है अल   व यल....में मैं गलती कर बैठा हूँ । आपने चिन्हित करके बताया, शुक्रिया

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 1:00pm

आदरणीय सूबे सिंह जी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..बस काफिया में अल और यल मुझे थोडा अटपटा लग रहा है बैसे इस पर बिद्व्त जनों की प्रतिक्रिया मिलने पर सही जानकारी मिलेगे सादर 

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