याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चिराई।
अनुभव हुआ एक दिन तेरी, जब हो गई विदाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दिन में हुई पराई।
परियों सी प्यारी गुड़िया को जा विदेश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------
लाख प्रयास किये समझाया, मन को किसी तरह से।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को किसी तरह से।
विदा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सिखार्इ।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें बड़ाई।
बिदा किया मन मन घन बरसे, फूटी कंठ रुलाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------
कृष्ण काल का मोक्ष हुआ, ऐसा अनुतोष दिया है।
वंश बेल की नींव डाल, अप्रतिम परितोष दिया है।
कुल रोशन कर घर समाज में खूब प्रशंसा पाई।
घर की डोर सम्हाल, कुल मर्यादा प्रीत बढ़ाई।
मेरे घर का मान बढ़ा, तू रह सदैव सुखदाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------
इक-इक युग सा बीता है, हर साल परायों जैसा।
मरु में मृगमरीचिका सा, सहरा में सायों जैसा।
ज्यूँ-ज्यूँ दिन बीते हैं, बूढ़ी आँखें हैं पथराई।
कौन करेगा भाई की, शादी में बाट रुकाई।
अब घर आयें बच्चों के सँग बेटी और जमाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------
सूद सहित खुशियाँ बाँटूँगा, तू आना बन ठन कर।
भाई की शादी में सँग नचना, गाना मन भर कर।
तुम लोगों से ही तो लेगा वो आशीष बधाई।
जीजाजी से ही तो बँधवायेगा पगड़ी टाई।
मेरे मन की अभिलाषा की तब होगी भरपाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Comment
आदरणीय आकुल जी,
कोयल-सी, सोंनचिराई बेटी के दो घरों के द्विगुणित स्नेह-सम्मान, आशाओं-अपेक्षाओं, दायित्व-मर्यादा आदि को उकेरता हुआ यह गीत अत्यंत मार्मिक है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आदरणीय गोपाल भाई , बेटी बिदा के बाद पिता की मन: स्थिति को बहुत सुन्दर बयान किया है आपने |हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें | गेयता कहीं कहीं बाधित लगी , ये भी हो जाए तो सोने मे सुहागा |
इस सुंदर भाव पूर्ण रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " सादर |
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