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दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं पड़ेगा.. जब हामिद वापस चला जायेगा, अपनी बहुरिया के साथ, अपने बेटे के साथ.. "
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(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Chhaya Shukla on August 11, 2014 at 8:40pm

आज की दादी के मनोभाव का  सजीव चित्र अंकित हुआ है सादर बधाई स्वीकारें सौरभ पांडे जी नमन ! 

Comment by Saurabh Mishra on August 11, 2014 at 7:06pm

Sabhi ke comments padhke laga jaise uprokt kahani aage shakhanvit ho gayi aur bahot se pahaloo ujagar hogaye woh bhi dristikono ke aadhar par.

Chaliye, kam se kam dadi aur hamid ka sneh aaj bhi jivit hai.

Comment by Kavita Verma on August 7, 2014 at 7:53pm

samyik ...

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on August 6, 2014 at 8:05am

Aaj ke halat ki sacchai darshati khubsurat laghu katha.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:36pm

आदरणीय भुवनजी, हार्दिक धन्यवाद कि आपने इस लघुकथा प्रस्तुति को अपना बहुमूल्य समय दिया. तथा आभारी हूँ कि आपको लघुकथा रुचिकर लगी.

सादर

Comment by भुवन निस्तेज on August 5, 2014 at 5:54pm

वाह ! इस  ईद पर ये फूड प्रोसेसर खूब रहा. दादी अमीना तब भी कम खुश नहीं थी जब हामिद सालों पहले ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. पर क्या ये दादी अपने बुढापे में सिर्फ फूड प्रोसेसर से खुश रहेगी, क्या हामिद कि ये जिम्मेवारी नहीं बनती कि वो दादी के बुढापे का सहारा बनें ? ये कहानी हर गल्फ जाते हामिद को झकझोर करती रहेगी. कहानी के लिए बधाई....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:22am

भाई जवाहरलालजी, आपकी उपस्थिति मेरे लिए बहुत मायने रखती है.

आपको कथा का हेतु और पात्रों के चरित्र प्रभावी लगे, यह मेरे प्रयास को मिला मान है.  हार्दिक धन्यवाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:20am

आदरणीया मंजरीजी, रचनाओं पर आपकी उपस्थिति हर तरह से उत्साह का कारण हुआ करती है. हामिद मेरी दृष्टि में एक पलायनवादी चरित्र है. आपने ऐसे चरित्र के प्रति भी सहानुभूति दिखा कर अपने औदार्य का परिचय दिया है. सादर धन्यवाद आदरणीया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:17am

भाई केवल प्रसादजी, कथा का मर्म आपने साझा किय है. प्रस्तुति पर समय देने और उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:16am

प्रिय शुभ्रांशु,  यह सही है कि, इस कथा में अमीना के चरित्र को उभारने में हामिद का चरित्र आधार बना है. अमीना का आजके हालत से समझौते कर लेना कथा का एक विशिष्ट पहलू है.

कथा पसंद आयी, मुझे भी अच्छा लगा.

शुभ-शुभ

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