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मोह माया मत समझ संसार को - ग़ज़ल

2122    2122   212

*********************

तन  से  जादा  मन  जरूरी  प्यार को

मन  बिना  आये हो क्या व्यापार को

***

मुक्ति  का  पहला  कदम  है  यार ये

मोह  माया  मत  समझ  संसार को

***

इसमें   शामिल  और  जिम्मेदारियाँ

मत समझ मनमर्जियाँ अधिकार को

***

डूब कर  तम में  गहनतम भोर तक

तेज   करता   रौशनी  की   धार  को

***

तब कहीं  जाकर  उजाला  साँझ तक

बाँटता   है   सूर्य   इस   संसार  को

***

देह  भी  तो  है  ‘मुसाफिर’  नाव  ही

रख  सदा  मजबूत  मन पतवार को

***

रचना 15 दिसम्बर 2013

मौलिक व अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 720

Comment

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Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:32pm
आदरणीय धामी जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है इसके लिए बधाई स्वीकारें
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:11pm

देह  भी  तो  है  ‘मुसाफिर’  नाव  ही

रख  सदा  मजबूत  मन पतवार को.... बहुत ही सुंदर दार्शनिक भाव लिए ग़ज़ल के हर शेर है .. बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2014 at 11:48am

आदरणीय जीतेन्द्र भाई , आपको  ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ , प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद  .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2014 at 10:20am

इसमें   शामिल  और  जिम्मेदारियाँ

मत समझ मनमर्जियाँ अधिकार को.............बहुत सही नसीहत

बहुत सुंदर गजल आदरणीय लक्ष्मण जी, हर एक शेर एक महत्वपूर्ण सन्देश देता हुआ. हार्दिक बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2014 at 8:49am

आदरणीय अनुपमा बहन ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2014 at 8:48am

आदरणीय भाई गिरिराज जी , गजल में आपको कुछ नयापन लगा इसके लिए आप सब के स्नेह और शुभकामनाओं का आभारी हूँ , आप सब का निरंतर मिलता स्नेह और मार्गदर्शन ही निरंतर कुछ नया सोचने पो प्रेरित करता है . आप सब का इसीप्रकार स्नेहाशीष मिलता रहे यही कामना है l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2014 at 8:44am

आदरणीय भाई नरेंद्र जी , गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:45pm

वाह !! बहुत खूब , सुंदर गजल हेतु  बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:39pm

आदरनीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल मे आपने एक नई सोच दी है , बहुत सुन्दर , बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 11:58am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आप जैसे वरिष्ठ रचनाकारों से सराहना मिलना सौभाग्य की बात है , आप सभी के आशीष से ही कुछ नया सोचने और लिखने की प्रेरणा मिलती है . आपका स्नेह मिलता रहे यही कामना है .

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