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गिड़गिड़ाने से बची कब लाज तेरी द्रोपदी-ग़ज़ल

2122    2122    2122    212

***
शब्द   अबला  तीर  में  अब  नार  ढलना  चाहिए
हर दुशासन का कफन  खुद तू ने  सिलना चाहिए

***
लूटता  हो  जब  तुम्हारी  लाज  कोई  उस समय
अश्क  आँखों   से  नहीं  शोला  निकलना  चाहिए

***
गिड़गिड़ाने   से   बची   कब   लाज  तेरी  द्रोपदी
वक्त पर उसको सबक कुछ ठोस मिलना चाहिए

**
हर समय तो आ नहीं सकता कन्हैया तुझ तलक
काली बन खुद  रक्त  बीजों  को  कुचलना चाहिए

**
फूल बनकर  दे महक  उपवन को  यूँ तो  रोज तू
ज्वाल भी  बन, जो  उठे  वो  हाथ  जलना चाहिए

***
        रचना - 20 मई 2014
     मौलिक और अप्रकाशित
   लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:35am

आदरणीया प्राची बहन सबसे पहले गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद । आज नारी के समर्थवान होते हुए भी जो दुर्दशा हो रही है उसमें कहीं न कहीं संस्कारगत कमी भी जिम्मेदार है । पहले गली मुहल्ले की लडकियों को बहन बेटी समझा जाता था आज संस्कारों की कमी के चलते उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा है । घर परिवार से अच्छे संस्कार मिलें तो शायद कुछ बदलाव आ सके ।

आपने भी आ0 शकील जम्शेद्पुरी जी के कहे से इत्तेफाक रखने की बात कही है । मुझे हर्फे रवी दोष के बारे में ज्ञान नहीं था या यूं कहें कि मैं इसे ठीक से समझ नहीं पाया यदि इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे सकें तो आभारी रहूंगा । सादर..... 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:33am

आदरणीय भाई नरेन्द्र चैहान जी गजल की तारीफ के लिए हार्दिक धन्यवाद कबूलें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:33am

आदरणीया मीना बहन गजल की सराहना के लिए दिली आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:33am

आदरणीय भाई जवाहर लाल जी गजल का अनुमादन करने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:32am

आदरणीय भाई नीलेश जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:32am

आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद कबूलें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2014 at 10:31am

आदरणीय भाई शकील जमशेदपुरी जी सबसे गजल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद साथ ही इकवा दोष के लिए भी । दरअसल मुझे इस दोष के विषय में अधिक जानकारी नहीं । आपसे नम्र निवेदन है कि सम्भव हो तो इस दोष के विषय में विस्तार से बताकर ज्ञान वर्धन कराएं आभारी रहूंगा ।

Comment by शकील समर on June 8, 2014 at 11:37pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी। मेरे विचार से मतले में ईता दोष नहीं है। क्योंकि वकाफी 'ढलना' और 'सिलना' का हर्फे रवी (ल) समान है। हां इसमें इकवा दोष जरूर है। क्योंकि हर्फे रवी से पहले लघु स्वर का विरोध हो रहा है। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 9:25pm

बहुत शानदार ओजपूर्ण ग़ज़ल लिखी है सभी अशआर प्रभावित कर रहे हैं ...मतले में ईता दोष मैं भी मान रही हूँ दूसरे तूने सिलना चाहिए की बजाय तुझको सिलना होना चाहिए था ,खैर वो तो आप दुरुस्त कर लेंगे ये विशवास है फिलहाल हार्दिक बधाई लीजिये इस ग़ज़ल पर 

Comment by coontee mukerji on June 8, 2014 at 4:09pm

जब तक नारी अपनी रक्षा स्वयम करना न सीखे तब तक वह लुटती रहेगी..आपके जोशीली रचना समस्त नारी के लिये एक प्रेरणा है.धामी जी आपको बहुत बहुत बधाई.

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