For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जमघट था हर ओर वहां
हर ओर अजब सा शोर था
छल्ले धुऐं के थे कहीं
और कहीं वाद विवाद का जोर था
एक अजनबी से बने
एक मूक दर्शक की तरह
हम कुर्सी की तलाश में
भीड़ से हट कर
एक कोनें में खडे
बार बार अपना
चश्मा साफ़ कर
इधर उधर
बार बार झाँक कर
पलकों के भीतर
आँखों की पुतलियों को
डिस्को करवा रहे थे
तभी एक कुर्सी खाली हुई
ओर हमने तुरत फुरत में
एक लाटरी की तरह
उसे झपट लिया
और एक गहरी सांस के साथ बैठ गये
हमारे सामने की टेबल पर तो
इलेक्शन की गणित पर
बहस हो रही थी
हर मंत्री के
कार्यौं का आंकलन हो रहा था
साथ वाली टेबल पर
समाज में व्याप्त
भ्रष्टाचार ,आतंक ओर रेप
जैसे विषयों पर
गहन विचार विमर्श
चल रहा था
साहब क्या लाऊँ
इतने में मेरे कानों
में एक कर्कश सी
आवाज आई
हमनें चौंक कर अपनी
नजर को तकलीफ दी
ओर फटे से
सफेद कोट ओर पेंट पहने
बैरे से कहा
एक प्याला काफी मेरे भाई
वो भी बिजी था
फिर भी
बिना विलम्ब किये
वो मेरी टेबल पर
काफी पटक गया
काफी से धुंआ निकलकर
सिगरटों के धुऐं से मिलकर
एकाकार हो रहा था
हर टेबल पर होने वाले फैंसले भी
धुऐं में मिलकर लुप्त हो रहे थे
हमनें भी अपनी काफी का आख़िरी घूँट लिया
पर गजब
हमारी जुबान पर काफी न आई
आती भी कैसे
काफी हाउस की
अर्थहीन सोच से ज्यादा तो
वो भी नहीं थी
प्याला खाली हुआ
तो हमने अपनी
सिक्स बाई सिक्स के आंकडे से खेलती
नजरों से इधर उधर देखकर
अपनी बालकमानी को सीधा किया
हम चलने को खड़े ही हुए थे कि
एक बैरा हमसे टकरा गया
और गर्मागर्म काफी का एक दाग
हमारी नई कमीज पर लगा गया
उसने सॉरी की
हम खिसयानी हंसी के साथ
काफी हॉउस की
अर्थहीन सोच का
एक दाग लेकर
आम आदमी की जिन्दगी में लौट आये
एक आम आदमी के सुख दुःख को
खुले आसमान में देखने के लिए
क्योंकि उसका सुख दुःख
तो दो वक्त की भूख है
जो काफी के धुऐं
की तरह उड़ नहीं जाती
हर पल
दो रोटी के लिए
उसकी कमर
बिलबिलाती है
जिम्मेदारियों के बोझ से
असमय ही झुक जाती है,
बावजूद इसके
उसके चहरे पर जब हंसी आती है
तो असली ही आती है
काफी हाऊस के
कहकहों की तरह
नकली नहीं होती
सिगरट के धुऐं की तरह
खत्म नही होती 

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2014 at 2:22pm

आदरणीय सत्यनारायण सिंह  जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा   का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2014 at 2:21pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा और स्नेहाशीष  का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2014 at 2:19pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा और सुझाव का हार्दिक आभार। 

Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2014 at 12:52pm

हम खिसयानी हंसी के साथ
काफी हॉउस की
अर्थहीन सोच का
एक दाग लेकर
आम आदमी की जिन्दगी में लौट आये..... बहुत सुन्दर

आ. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2014 at 1:58am

स्टॉर्म इन द कॉफ़ी कप .. क्या ऐसे ही माहौल को नहीं कहते हैं ?

पैनी दृष्टि से परख और कविता के लिए बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय सुशीलजी.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2014 at 8:14pm

कॉफ़ी हाउस की यथा मंज़रकशी की है..वैसे इस प्रस्तुति में काव्य तत्वों की कुछ कमी महसूस हुई.

प्रस्तुति पर शुभकामनाएं 

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2014 at 12:55pm

aa.coontee mukerjee रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by coontee mukerji on April 30, 2014 at 12:58am

बहुत सुंदर रचना है. आपको हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2014 at 7:07pm

आदरणीया जितेन्द्र 'गीत'  जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2014 at 7:05pm

आदरणीया मुकेश श्रीवास्तव  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service