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है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या
.
मौलिक/ अप्रकाशित

संशोधित

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Comment

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Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 10:58am

आपकी गरिमामय उपस्थिती से रचना सार्थक हुयी| आपका हार्दिक आभार आ० राजेश दी!

आपके सुझाव का सहर्ष स्वागत है|

सादर वेदिका

Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 10:55am

आभार आ० लक्ष्मण जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2014 at 10:03am

प्रिय वेदिका ,ये हुई न बात !!!! कितनी सुन्दर ग़ज़ल लिखी है देर से पढ़ी इसका खेद है सभी अशआर ....सुभानल्लाह ...ढेरों बधाई 

जो मैं कहना चाह रही थी आ० सौरभ जी पहले ही इंगित कर चुके हैं ...इस समस्या के निवारण की मैंने एक कोशिश की है यदि आपको अच्छा लगे ...आपके ही शब्द हैं आपके ही भाव हैं ..बस इस तरह कहें तो-----

गिर गया जो नज़र में अपनी कहो ,

जीत पायेगा ये जहान भी क्या.

दिली दाद आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल पर |
.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:33am

वाह...क्या बात है , बधाई कबूल करें .

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:30pm

आ० सौरभ जी! एवं आ० शिज्जु जी!

गज़ल मे फाइलातुन को निभाने के लिए मुझे नज़्र शब्द का उपयोग करना पड़ा| नज़र के इलावा इसका कोई दूसरा अर्थ भी होता है, इस तथ्य से मै अनभिज्ञ थी| इस कारण से गज़ल दोषयुक्त हो रही है, इसे दोषमुक्त करने के लिए मार्गदर्शन दीजिये|  

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:15pm

आपकी दिली दाद दिल से कुबूल प्रिय महिमा

आभार!

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:14pm

गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आ० मंजरी जी!

Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:21pm
आदरणीया गीतिका जी बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:20pm

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या..
.एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या

क्या बात है .. शानदार गज़ल गीतिका जी .. दिली दाद प्रेषित हैं ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 15, 2014 at 8:58am

ओह, भाई शिज्जूजी ने ऑलरेडी इशारा कर दिया है. शुक्रिया भाई !

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