"रागिनी ! इन छोटी छोटी बातों को नजरंदाज करना सीखो I"
"तो आप क्या चाहते हैं कि मैं चुप बैठी रहूँ ?"
"देखो अकेली यात्रा करोगी तो कोई न कोई ऐसा व्यवहार करेगा ही I अब क्या मिलेगा पुलिस में शिकायत करने से ?"
राजेंद्र ने छोटी बहन को समझाया।
"आपकी बेटी भी तो कुछ ही सालों में जवान हो जाएगी भाईसाब I "
भाई के माथे पर अचानक पसीने की बूँदें चुहचुहा उठीं।
"रुक रग्गो, गाड़ी निकालने दे मुझे, हम सब तुम्हारे साथ चलेंगे रिपोर्ट लिखवाने I "
(संशोधित)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by वेदिका on October 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
एक गज़ल
वज्न- 122 122 122 12
मेरे दिल को तुझसे वफ़ा चाहिए
न जख्म ए जिगर फिर नया चाहिए
~
है अरसा हुआ मै हूँ अब भी वहीँ
तेरे दिल से निकली सदा चाहिए
~
जो बीमार को कर सके है भला
किसी हाथ में वो शिफ़ा चाहिए
~
ये हैं इन्तेज़ामात तेरे ख़ुदा
है किसने कहा इब्तिला* चाहिए दुःख
~
जो दिल हैं परेशां जफ़ा से यहाँ
महज़ उनके खातिर दुआ…
ContinueAdded by वेदिका on July 16, 2014 at 12:02pm — 30 Comments
वज्न ~ 1222 1222 122
शिकायत है, नही कुछ भी जियादा
मुहब्बत है, नही कुछ भी जियादा
करे वह वार मुझ पे पीठ पीछे
अदावत है, नही कुछ भी जियादा
.
बदलते रंग क्यों गिरगिट के जैसे
ये आदत है, नही कुछ भी…
Added by वेदिका on June 22, 2014 at 1:30am — 14 Comments
2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.
गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में…
Added by वेदिका on June 18, 2014 at 12:42am — 40 Comments
भोले मन की भोली पतियाँ
लिख लिख बीतीं हाये रतियाँ
अनदेखे उस प्रेम पृष्ठ को
लगता है तुम नहीं पढ़ोगे
सच लगता है!
बिन सोयीं हैं जितनीं रातें
बिन बोलीं उतनी ही बातें
अगर सुनाऊँ तो लगता है
तुम मेरा परिहास करोगे
सच लगता है!
रहा विरह का समय सुलगता
पात हिया का रहा झुलसता
तन के तुम अति कोमल हो प्रिय
नहीं वेदना सह पाओगे
सच लगता है!…
ContinueAdded by वेदिका on December 2, 2013 at 5:00am — 54 Comments
झाड़
खामोश और बेकार
न पौधा न पेड़
न छाया न आराम न हवा
सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल
जो भूख नही मिटाते इंसान की
और पशु की भूख
वह कभी मिटती नहीं
झाड़
एक आस जरूर देता है
काँटे सी चुभती आस
किसी के पुकारने की
उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन
उफ ये रात
सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा
घूरता हुआ दिन
भभकता हुआ सूरज
धकेलता है दिन अकेला
कोई तो रास्ता हो
तर्क-…
ContinueAdded by वेदिका on November 19, 2013 at 12:25am — 32 Comments
सुनो तुम
न जाने कहाँ हो!
तुम्हें देख रही है मेरी आँखें
तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें
तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें
लेकिन तुम नहीं हो
बहुत दूर दूर तक
बहुत दूर ...के पार
हाँ! शायद तुम वहाँ हो
सुनो तुम...
जाने, तुम हो भी या नहीं
कभी तो लगता है यही
पर तुम्हें होना चाहिए
है न
पर मै नहीं हूँ
तुम्हारे होने तक
मेरी नज़रें
नही जातीं वहाँ तक
कि तुम जहाँ…
ContinueAdded by वेदिका on August 19, 2013 at 2:30pm — 25 Comments
वज्न / २१२२ २१२२ २१२
चाह थी जिनकी, हमारे मिल गये
गुम कहीं थे ख्वाब, सारे मिल गये.
एक धागा बेल के धड़ से मिला
बेसहारों को सहारे मिल गये
.
हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी
और तुम बाहें पसारे मिल गये
.
डूबती नैया के तुम पतवार हो
साथ तेरे हर किनारे मिल गये
.
देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी
यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये
.
सच अगरचे, देख के अनदेख हो
झूठ जीतेगा, इशारे…
ContinueAdded by वेदिका on August 5, 2013 at 8:59pm — 49 Comments
मेरे दादाजी को श्रद्धांजली स्वरूप कुछ पंक्तियाँ
पिता!
तुम छत थे
ढह गये
तीव्र उम्र तूफान से
दरक गयीं दीवारें
लगाव ख़त्म
आपसदारी 'थी'
'है' नही
न कोई बचाव
धूप से
या बारिश से
शीत से
या गैरों से
न रहा घर
रह गया ढेर
ईंटों का
तुम थे 'एक छत'
हम 'चार दीवारें'
मिटा दिया हमने
अहसास
तुम्हारे होने का
तुम गये, शेष
एक प्रश्न
अवशेष …
Added by वेदिका on July 25, 2013 at 8:00pm — 19 Comments
घास का इक नर्म
बिछौना बनाकर
ओढ़ कर नीले
गगन की सर्द चादर
सोया है कोई …
ओस बिखरी है जो
हरी हरी घास पर
साँस भर भर आई
हर साँस पर
रोया है कोई ….
कहीं पुरवाइयों में
ओस की रुलाइयों में
चूड़ियों सा चटका है
टूटा, मेरी कलाईयों में
बिखरा है कोई …
गर्म लहू जमा वह
या ठंडी बरसात है
कुहासे का झाग
या तो चीख की आग
भिगोया है कोई…
ContinueAdded by वेदिका on July 9, 2013 at 3:30pm — 30 Comments
Added by वेदिका on July 5, 2013 at 12:00am — 43 Comments
सार/ललित छंद १६ + १२ मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु गुरु अर्थात s s से,, छन्न पकैया पर प्रथम प्रयास / क्रिकेट विषय
छन्न पकैया छन्न पकैया, टॉस करेगा सिक्का
कौन चलेगा पहली चाली, हो जायेगा पक्का ।। १
छन्न पकैया छन्न पकैया, कंदुक लाली लाली
इक निशानची ठोकर मारे, गिल्ली भरे उछाली।। २
छन्न पकैया छन्न पकैया, बादल छटते जाये
आँखों में है धूर…
ContinueAdded by वेदिका on July 2, 2013 at 5:30pm — 39 Comments
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
जिसका विधान न हो!
न अनुनय के शब्द रहे
तेरी प्रार्थना रिक्त रहे
और प्रार्थी का तुझ
सम्मुख; कोई मान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह…
ContinueAdded by वेदिका on June 26, 2013 at 2:30am — 26 Comments
व्यथा!
तुम
मन के किबाड़े
खोलना मत
खोलना मत
सौ तरह के
व्यंग होगे
धूल धूसर
संग होंगे
भाव कोई गैर
अपनी
भावना में
घोलना मत
घोलना मत
व्यथा!
खुद से कहना
खुद ही सहना
तेरी
अंतर यातना
पर किसी से
बोलना मत
बोलना मत
व्यथा!
गीतिका 'वेदिका'
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by वेदिका on June 22, 2013 at 10:06pm — 32 Comments
साथी!
जिस राह पे चलकर तुम जाते
वह राह मनचली
क्यों मुड़ के लौट नही आती ...
ये बैरन संध्या
हो जाये बंध्या
न लगन करे चंदा से
न जन्में शिशु तारे
बस यहीं ठहर जाये
ये शाम मुंहजली
जो मुड़ के लौट नही पाती ...
श्वासों के तार
ताने पल पल
न टूट जायें
ये अगले पल
ले जाओ दरस हमारा
दे जाओ दरस तुम्हारा
यह लिखती पत्र पठाती
यह राह मनचली
जो मुड़ के…
Added by वेदिका on June 5, 2013 at 11:00am — 25 Comments
डमरू घनाक्षरी अर्थात बिना मात्रा वाला छंद
३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में
लह कत दह कत, मनस पवन सम
धक् धक् धड़कन, धड कत परबस
डगमग डगमग, सजन अयन पथ,
बहकत हर पग, मन जस कस तस
बस मन तरसत, बस मन पर घर
अयन जतन तज, अचरज घर हँस
चलत चलत पथ, सरस सरस पथ,
सजन सजन पथ, हरस हरस हँस
…
ContinueAdded by वेदिका on May 1, 2013 at 2:00am — 11 Comments
जब भी मै गयी
स्टोर में
या अटारी में
या खेत के गोदाम में
उठाने पुरानी यादें
जहाँ कोई नही जाता
मेरे तुम्हारे सिवा
एकदम से तुम आ गये
धीरे से ..और
जोर से डरा दिया मुझे
धप्पा!!
- 'वेदिका'
Added by वेदिका on March 15, 2013 at 11:30am — 6 Comments
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