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ग़ज़ल -इक वहीँ से मुकद्दर दिला दीजिए

एक पुरानी ग़ज़ल -

२१२२    १२२१   २२१२

बेकली मेरे दिल की मिटा दीजिए

ऐ मेरे चारागर कुछ दवा दीजिए

 

कुछ तो जज्बात मेरे समझिए जरा

कुछ तो मेरी वफ़ा का सिला दीजिए

 

दिल धुआं है मगर शोले जलते नहीं

इन शरारों को थोड़ी हवा दीजिए

 

बस तिज़ारत जहाँ पर नसीबों की हो

इक वहीँ से मुकद्दर दिला दीजिए

 

नींद आई थी जब एक अरसा  हुआ

उम्र भर के लिए अब सुला दीजिए

 

दम घुटा है बहुत सोने की कैद में

मेरी माटी से मुझको मिला दीजिए

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on April 6, 2014 at 9:36pm

नींद आई थी जब इक जमाना हुआ

उम्र भर के लिए अब सुला दीजिए...............

 

दम घुटा है बहुत सोने की कैद में

मेरी माटी से मुझको मिला दीजिए..............बहुत खूब! 

Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 12:54pm

बहुत सुंदर गज़ल. हार्दिक बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on April 5, 2014 at 4:33pm
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।
Comment by vijay nikore on April 5, 2014 at 11:06am

 

सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।

Comment by sanju shabdita on April 4, 2014 at 8:25pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नीरज नीर जी

Comment by sanju shabdita on April 4, 2014 at 8:24pm

हार्दिक आभार आदरणीया प्राची दी प्रस्तुत ग़ज़ल को मान देने हेतु ..आपका समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण है .मार्गदर्शन बनाये रखिए.सादर

Comment by sanju shabdita on April 4, 2014 at 8:21pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Baidyanath Saarthi जी

Comment by Neeraj Neer on April 4, 2014 at 8:07pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है ..बहुत बधाई ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2014 at 7:48pm

नींद आई थी जब इक जमाना हुआ

उम्र भर के लिए अब सुला दीजिए...............बहुत मार्मिक भाव 

 

दम घुटा है बहुत सोने की कैद में

मेरी माटी से मुझको मिला दीजिए..............बहुत खूब! 

बहुत सुन्दर गहन भावों को शब्द मिले हैं अश'आरों में 

बहुत बहुत बधाई प्रिय संजू शब्दिता जी 

Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 4:49pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल..

दम घुटा है बहुत सोने की कैद में

मेरी माटी से मुझको मिला दीजिए...दाद स्वीकार करें !

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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